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अन्धविश्वास ही भारत की गुलामी का कारण बना

हमारे यहाँ हजारों वर्षों तक विदेशियों का शासन रहा। इसका एक मात्र कारण यहॉं पर फैलाया गया अन्धविश्वास ही था। इतिहासकार भारत की गुलामी का कारण आपसी फूट मानते हैं। भारतीय राजाओं ने संगठित होकर विदेशी आततायियों का सामना नहीं किया, इस सत्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है। लेकिन हमारे यहॉं सदियों से यही परम्परा रही है कि महारथी वही होता था जो अकेले ही दस हजार योद्धाओं के साथ युद्ध कर सकता था। अश्वमेध यज्ञ की जो प्रथा थी उसमें भी जो राजा चक्रवर्ती होता था वही अश्व छोड़ता था। उसके साथ सेना होती थी। जो राजा अश्व को रोकता उससे युद्ध होता था। न तो कभी अनेक चक्रवर्ती राजाओं ने घोड़े एक साथ छोड़े और न अनेक राजाओं ने घोड़े एक साथ पकड़े। घोड़े को पक़ड़ने का नियम यही था जिस राजा के राज्य से घोड़ा निकलेगा वह रोके या न रोके उसकी इच्छा पर निर्भर था। आर्य लोग केवल धर्मयुद्ध में विश्वास करते थे। कोई भी आक्रमणकारी भारत पर चढकर आया तो उसके पास 10 हजार से अधिक सेना नहीं थी। इसलिए अनेक राजा मिलकर उनके साथ युद्ध करते यह सम्भव नहीं था। जिस राजा के राज्य से होकर आक्रमणकारी जाता था वही राजा युद्ध करता था। गुरु गोविन्द जी का यह कथन "सवा लाख से एक लड़ाऊं चिड़ियन ते मैं बाज उड़ाऊं" इसी का संकेत है।

Ved Katha Pravachan _102 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


राजा विराट की गौ हरण करने पर अर्जुन ने अकेले ही कौरवों के सभी महारथियों को परास्त कर दिया था। लेकिन जब कौरवों की ओर से ग्यारह अक्षौहिणी सेना और कई राजाओं ने दुर्योधन का साथ दिया तो पाण्डवों की ओर से सात अक्षैहिणी सेना युद्ध में लड़ी थी। इसी प्रकार महाराज दशरथ भी देवराज इन्द्र की सहायता के लिए गये थे। महाभारत काल तक वेद की परम्परा का पालन होता रहा। दुर्योधन ने पाण्डवों को राज्य से विहीन कर दिया। 12 वर्ष वन में भटकाया। लाक्षागृह में जला कर मारना चाहा
भरी सभी में द्रोपदी को नंगा करना चाहा। एक वर्ष तक अज्ञातवास में अर्जुन को हिजड़ा बनकर रहना पड़ा। उन्हीं दुष्ट कौरवों को देखकर अर्जुन गाण्डीव फेंक देता है। उसी समय योगीराज कृष्ण उसे कर्त्तव्य का बोध कराते हैं कि अत्याचारियों और दुष्टों से समाज को छुटकारा दिलाने में कोई अपना सगा नहीं होता और न ही उसके वध से पाप होता है। भीष्मद्रोण और कर्ण का वध मनु महाराज के इन श्लोकों के विरुद्ध दिखायी पड़ता है।

न च हन्यात्स्थला रुढ न कलीबं न कृत्ताञ्जलिम्‌।
मुक्तकेशं नासीनं न तवास्मीति बदिनाम्‌।।

न सुप्त न विसन्नाहं न नग्नं न निरायुधम्‌।
ना युद्धायमानं पश्यन्तं न परेण समागतम्‌।।

नायुधव्यसनं प्राप्त नार्त नातिपरिक्षितम्‌।
न भीतं न परावृत्तं सत्तां धर्ममनुसारम्‌।।

अर्थात्‌ न नपुंसकन हाथ जोड़े हुएजिनके बाल खुले होंन बैठे हुएन सोते हुएन मूर्छा को प्राप्त हुएन नंगेन आयुध से रहितन घायलन डरे हुएन दुखी पुरुषों को सत्पुरुषों के धर्म का स्मरण करते हुए योद्धा लोग कभी न मारें। इनसे विघ्न की आशंका हो तो इन्हें सदैव बन्दीगृह में रखना चाहिए। भीष्मद्रोणकर्ण तीनों ही अपने-अपने गुणों में विश्व में महान थे। भीष्म बहादुर एवं नीतिज्ञद्रोण शास्त्र विद्या में पारंगत तथा कर्ण दानवीर थे। लेकिन इन तीनों के जीवित रहने से अधर्म की वृद्धि होती और प्राणियों को दु:ख होता। इसलिए शठे शाठ्‌यं समाचरेत्‌ अर्थात्‌ सबके साथ प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य बर्तना चाहिए। लेकिन जो धार्मिक राजा हैं उनसे विरोध कभी न करेंकिन्तु सदा उनसे मेल रखें। जो दुष्ट प्रबल हो उसी को जीतने के लिए ऐसे उपाय करना जिससे संग्राम में अपनी विजय हो उन सभी युक्तियों का प्रयोग करना अर्थात्‌ युद्ध में पीठ न दिखाना क्षत्रियों का धर्म है। लेकिन शत्रु को जीतने के लिए उसके सामने से छिप जाना उचित है। सिंह की तरह क्रोध में आकर शस्त्राग्नि में जलकर मर जाना कायरता ही कही जायेगी।

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महाभारत काल तक अन्धविश्वास से मुक्त रहने के कारण आर्यों का चक्रवर्ती राज्य रहा। इसके बाद जैसे-जैसे समाज में पाखण्ड की वृद्धि होती रही वैसे-वैसे ही युद्ध कला को भी पाखण्ड ने ग्रस लिया। मत-मतान्तरों की उत्पत्ति होने से अविद्या और पाखण्ड ने क्षत्रियों को भी विद्या पढने से रोक दिया और कल्पित ब्राह्मणों ने जीविका मात्र वेद विद्या का पठन-पाठन जारी रखा। युद्ध हुआ तो सिकन्दर ने रात को अचानक हमला किया था। रात्रि में युद्ध न करने का भ्रम तोपों ने फैला रखा था। परन्तु मनु जी ने कहा है:-

उपरूध्यारिमासीत राष्ट्रं च चास्योप पीडयेत्‌।
दूषयेच्चास सततं यवसान्नोद केन्धनम्‌।।

भिधाच्चैव तडामानि प्राकारपरिखास्तथा।
समबस्कन्दयेत्त्वैनं रात्रौ वित्रासयेत्तथा।।

अर्थात्‌ शत्रु को चारों ओर से घेर कर रोक रखें। उसके राज्य को पीड़ित कर शत्रु के चाराअन्नजलईंधन को नष्ट करें। शत्रु के तालाबनगर के प्रकोट खाई को तोड़फोड़ दें । रात्रि में उनको भय देकर जीतने का उपाय करें।

सिकन्दर ने इन श्लोकों का सदुपयोग करके विजय पाई। जब युद्ध विद्या के नियमों में अन्धविश्वास चरम सीमा पर पहुंच गया तो चाणक्य महाराज का जन्म हुआ। उन्होंने इस विद्या को पुनर्जीवित किया और अपने शिष्य चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाया तथा चाणक्य की नीति और दूरदर्शिता के द्वारा सिकन्दर और सेल्यूकस जैसे आक्रमणकारियों का विश्व विजय का सपना चकनाचूर ही नहीं हुआ बल्कि सिकन्दर को भारत छोड़कर जाना पड़ा और सेल्यूकस को अपनी लड़की चन्द्रगुप्त को देनी पड़ी। किसी भी आक्रमणकारी का भारत पर हमला करने का साहस नहीं हुआ लेकिन विद्या के शत्रुओं ने फिर वही पाखण्ड फैला दिया। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अहिंसा परमोधर्म: के सिद्धान्त ने आयुर्वेद तथा युद्ध विद्या का विकास अवरुद्ध कर दिया। महावीर क्षत्रिय थे। जब क्षत्रिय ही कल्पित रूढिवादी अहिंसा का उपदेश करने लगे तो प्रजा बेचारी क्या करतीअहिंसा का रूढिवादी अर्थ समाज में फैल गया। क्षत्रिय राजा युद्ध से विमुख होने लगे। चन्द्रगुप्त के पौत्र सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। रूढिवादी प्रचलन से अपराधियोंलुटेरों से समाज की रक्षा करने में भारत की सैन्य शक्ति फिर दुर्बल हो गयी। इसकी खबर विदेशों में लगने से फिर आक्रमण शुरु हो गये। महमूद गजनवी बार-बार आता और लूटपाट करके चला जाता। उसका सोलहवां आक्रमण सोमनाथ के मन्दिर पर हुआ। पोप पुजारियों ने क्षत्रिय राजाओं को बहका रखा था कि महादेव जी हनुमान भैरववीरभद्र को भेज देंगे तुम्हें सेना मरवाने की क्या जरूरत हैज्योतिषियों ने बताया कि तुम्हारा लड़ाई का मुहूर्त्त नहीं है। मन्दिर की दीवारों में पाषण चुम्बकीय थे जिससे मूर्ति बीच में लटकी थी। एक दीवार टूटने पर नीचे गिर गयी। पुजारियों ने प्रार्थना की कि हमारी जीविका को नष्ट न करो। परन्तु महमूद ने कहा हम बुतपरस्त नहीं बुत शिकन हैं और अठारह करोड़ के रत्न ले गया। इसके 150 वर्ष बाद मुहम्मद गोरी ने आक्रमण किये। पृथ्वीराज ने उसे पकड़ कर भी छोड़ दिया। यदि पृथ्वीराज जैसे प्रतापी राजा वैदिक युद्ध नीति को जानते कि शत्रु से उपद्रव की आशंका हो तो उसे आजीवन बन्दीगृह में रखा जाये या मृत्युदण्ड भी दिया जाये तो भारत कभी गुलाम न होता।

चित्तौड़ के महाराणा रतन सिंह ने भी अलाउद्दीन को कई बार पकड़ कर छोड़ा। लेकिन अलाउद्दीन ने धोखे से अवसर पाते ही रतनसिंह को बन्दी बना लिया। महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) विजय के नशे में अपने कैम्प में विराजमान थे। किसी देशद्रोही ने बाबर को शिक्षा दी कि राणा जी अकेले हैं। उन पर आक्रमण कर दिया जाये तो सेना भाग खड़ी होगी। यही हुआ विजय बाबर को मिली। महारानी पद्मिनी ने सात सौ रानियों के साथ जौहर किया व अपने सतीत्व की रक्षा कीलेकिन इसके विपरीत जयमल-फत्ता की रानियॉं स्त्रियों की फौज बनाकर अपने पतियों के साथ युद्ध भूमि में अकबर की सेना से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुई। उन्होंने कहा कि जब हमारे पति कई मुगलों के प्राण ले लेते हैं तो हमें उनके मार्ग का अनुकरण करना चाहिए। महाराणा प्रताप जी ने हल्दीघाटी के युद्ध में सलीम को प्राणदान दे दिया। महाराणा जी अभिमन्यु प्रसंग को भूल गयेजब सात महारथियों ने सोलह वर्ष के अभिमन्यु को मार डाला था। यवन लोग भारतीय राजाओं के अन्धविश्वास से फायदा उठाते गये। कुछ पोपों से षड्‌यन्त्र कराकर ऐसे भी नियम बनवाये कि युद्ध में यदि यवनों का स्पर्श हो जाये तो यवन बन जाओगे। युद्ध में एक-दूसरे का अंग स्पर्श अवश्य होता है। इसलिए राजपूत लोग यवनों के शरीर स्पर्श भय से धर्म नष्ट होने से बचते थे और आक्रमणकारियों को अपने राज्य से निकलने की अनुमति दे देते थे। यवनों के द्वारा भोजन सामग्री स्पर्श होने पर पूरी सेना भूखी कब तक लड़ सकती थीइसलिए यवनों की विजय आसान हो गयी। वीर शिवाजी ने युद्ध में नीति के द्वारा यवनों परविजय पाई। वीर शिवाजी के योग्य गुरु समर्थ रामदास जी और माता जीजाबाई ने पाखण्ड को हटाकर उन्हें सच्ची वैदिक युद्ध विद्या सिखाई थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि आपसी फूट से ज्यादा खतरनाक अन्धविश्वास ही पराजय एवं भारत की गुलामी का कारण बना।- डॉ. रणवीर सिंह आर्य (आर्य जगत्‌ दिल्ली25 जनवरी 1998)

 

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Alexander conquered by using these verses properly. Chanakya Maharaj was born when superstition in the laws of warfare reached the climax. He revived this knowledge and made his disciple Chandragupta the emperor and through Chanakya's policy and foresight, the invaders like Alexander and Seleucus did not just shatter the dream of world conquest but Alexander had to leave India and give Seleucus to his girl Chandragupta. Lying. No invader had the courage to attack India but the enemies of Vidya spread the same hypocrisy again.

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