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भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-8

लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

सर सैयद अहमद खॉं- 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के मुस्लिम नेताओं में सर सैयद अहमद खॉं अन्यतम थे। स्वामी दयानन्द के वे बड़े प्रशंसक थे। दोनों परस्पर मिल-बैठकर विभिन्न विषयों पर चर्चा में प्रवृत्त रहते थे। दिल्ली दरबार के अवसर पर आयोजित एकता सम्मेलन में स्वामीजी ने उन्हें आदरपूर्वक आमन्त्रित किया था। स्वामीजी के सम्पर्क में आनेवाला व्यक्ति उनके बौद्धिक वैभव से प्रभावित होकर उस दिशा में सोचने लगता था। सत्यार्थप्रकाश में मिथ्यार्थ की समीक्षा ने अनेक मुसलमान विद्धानों को कुरान अनुवाद और उसके आधार पर प्रचलित सिद्धान्तों में अपेक्षित संशोधन करने की प्रेरणा की। इस दिशा में सबसे पहले सर सैयद अहमद खॉं ने कदम बढाया और कुरान की बुद्धिगम्य व्याख्या करने का प्रयास किया, परन्तु जिस मजहब में मन्तक (Logic) की किताब के वर्क से पैर छू जाने से ही मनुष्य काफिर और इस कारण वाजिबुल कत्ल करार दे दिया जाता हो, वहॉं अक्ल को दखल कहॉं? मुसलमानों में उन्हें नास्तिक और प्रकृतिपूजक कहा जाने लगा। इस्लाम में काफिर तो वाजिबुल कत्ल है ही, जो इस्लाम के दायरे में हैं और अपने आपको मोमिन कहते हैं उनके सिर पर भी तलवार लटकती रहती है। यदि किसी ने थोड़ी-सी भी अक्ल की बात की या सुधार का नाम लिया या प्रचलित मान्यताओं या विश्वासों से वैमत्य प्रकट किया तो उसके विरुद्ध फतवा जारी कर उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। आज सन्‌ 1994 में ‘Satanic Verses’ के लेखक ब्रिटिश नागरिक सलमान रुशदी और "लज्जा" उपन्यास की बंगलादेशीय लेखिका तसलीमा नसरीन के साथ यही हो रहा है और हम तो यहॉं 19वीं शताब्दी की बात कर रहे हैं।

जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
जैसा बोओगे वैसा काटोगे
Ved Katha Pravachan _23 (Explanation of Vedas & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


सर सैयद अहमद खॉं और उनके सहयोगियों ने इस्लाम का रूप सॅंवारना चाहा तो मुसलमान बौखला उठे। इस बौखलाहट के नमूने के तौर पर हम यहॉं उस पात्र को उद्‌धृत कर रहे हैं जो "तहजीबुल इखालाक" जिल्द अव्वल के पृष्ठ 261 पर छपा है। यह पत्र मजहरुल्मुल्क ने मौलवी महदी अली। (मोहसिनुल्मुल्क) को लिखा था -

"हजरत न मुहत्सिब (हिसाब लेने वाला) हैजिसके दुर्रे का खौफ होन काजी है जिसके फतवे से दार (सूली) का डर हो। आजाद सरकार की हकूूमत हैवरना इस आजादी से बकबक करने की कैफियत मालूम हो जाती। अब तक कभी की आजादी आपको दुनिया से हासिल हो गई होती। इससे बेहतर है कि आप मजहवी तहरीरों से बाज आ जाएँवरना कोई जला हुआ मुसलमान कुछ कर बैठे तो सब खैरखाही इस्लाम की मालूम हो। दिलजले बुरे होते हैं।"

सर सैयद अहमद खॉं के सहयोगियों पर इस प्रकार की धमकियों का क्या प्रभाव पड़ाहम नहीं कह सकतेपरन्तु सर सैयद क्या-से-क्या हो गयेयह यहॉं आगे दिये विवरण से पता लग जाता है। पंजाब के हिन्दुओं के सामने बोलते हुए सर सैयद अहमद खॉं ने कहा था-

“The world ‘Hindu’ that you have used for yourself is, in my opinion not correct because that is not in my view the name of a religion. Rather, every inhabitant of Hindustan can call himself Hindu. I am, therefore, sorry that you do not regard me as a Hindu, though I am an inhabitant of Hindustan.”

अर्थात्‌ आपने अपने लिए "हिन्दू" शब्द का प्रयोग करके ठीक नहीं किया। हिन्दू शब्द किसी मत या सम्प्रदाय का वाचक नहीं है। हिन्दुस्तान में रहनेवाला प्रत्येक व्यक्ति अपने को हिन्दू कह सकता है। मुझे खेद है कि आप लोग मुझे हिन्दू नहीं मानतेयद्यपि मैं हिन्दुस्तान का रहनेवाला हूँ।

आज कौन विश्वास करेगा कि उपर्युक्त शब्द कभी इस देश में साम्प्रदायिकता की जननी अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खॉं के मुँह से निकले थे। कुछ ही दिन बाद इन्हीं सैयद अहमद खॉं ने लिखा -

“I object ot every Congress, in every shape or form, whatsoever, which regards India as one nation.”

अर्थात्‌ मैं किसी भी रूप में हिन्दुस्तान को एक राष्ट्र मानने के लिए तैयार नहीं हूँ। इन शब्दों से स्पष्ट है कि सन्‌ 1947 में भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार द्विराष्ट्रवाद (Two Nation Theory) के प्रवर्त्तक सर सैयद अहमद खॉं थेन कि मुहम्मद अली जिन्नाह। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी रूपी विषवृक्ष का बीजारोपण मुहम्मेडन एंग्लो ओरियण्टल कालिज (M.A.O. College) के रूप में सन्‌ 1875 में सर सैयद अहमद खॉं के द्वारा हुआ था।

सन्‌ 1883 में बैक (Beck) नामक एक अंग्रेज की नियुक्ति कॉलिज में प्रिंसिपल के पद पर हुई। 1899 तक यह व्यक्ति अपने पद पर बना रहा। इन सोलह वर्षों में सर सैयद अहमद खॉं और उनका कालिज पूरी तरह मिस्टर बैक के प्रभाव में रहे। परिणामत: ये दोनों राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के केन्द्र बन गये। इंग्लैंड से भारत के लिए रवाना होने से पूर्व इन्हीं मि. बैक ने वहॉं एक भाषण दिया था। अपने भाषण में भारत के लिए प्रस्तावित संसदीय पद्धति का विरोध करते हुए मि.बैक ने कहा था कि इस प्रणाली के लागू हो जाने पर -

“The Muslims will be under the majority opinion of the Hindus, a thing which will be highly resisted by the Muslims and which, I am sure they will not accept quietly.”

इस प्रकार मुसलमानों को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काकरहिन्दुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाने के इरादे से बैक ने इस देश की धरती पर कदम रक्खा और जब तक यहॉं रहा इस दिशा में प्रयत्न करता रहा। सन्‌ 1885 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई। इसके तीन वर्ष बाद 1888 में मि. बैक के परामर्श और सहयोग से सर सैयद ने ‘Patriotic Association’की स्थापना की जिसका उद्देश्य ब्रिटिश पार्लियामेंट को यह विश्वास दिलाना था कि स्वराज्य के लिए किये जा रहे आन्दोलन में भारत के मुसलमान हिन्दुओं के साथ नहीं है। इंगलैंड लौटने पर सन्‌ 1895 में मि. बैक ने एक भाषण दिया जिसका सार संक्षेप अलीगढ कालिज के मैगजीन में इन शब्दों में छपा था-

“A friendship between the English people and Muslims was possible but not between the Muslims and followers of other religions.”

अर्थात्‌ अंग्रेजों के साथ तो मुसलमानों का मेल हो सकता हैकिन्तु अन्य मत वालो के साथ नहीं। इस प्रकार की भावना के रहते साम्प्रदायिक सद्‌भाव तथा देशभक्ति का विचार भी मुसलमानों के भीतर कैसे पनप सकता था?

सन्‌ 1898 में सर सैयद की और 1899 में बैक  की मृत्यु के बाद बैक के उत्तराधिकारी थियोडार मौरिसन ने बैक का काम जारी रक्खा। वह मुसलमान विद्यार्थियों को बराबर भड़काता रहता था कि भारत में लोकतन्त्र का अर्थ होगा-अल्पसंख्यक मुसलमानों को लकड़हारेघसियारे और पानी भरनेवालें झींवर बना देना।

मौरिसन के बाद कालिज के प्रिंसिपल के पद पर आर्चिबाल्ड नामक अंग्रेज की नियुक्ति हुई। उन दिनों बंग विभाजन के कारण लोगों में भारी उत्तेजना था। उसे शान्त करने के लिए अंग्रेज सरकार शासन में कुछ सुधार करना चाहती थी। जैसे ही इस बात की भनक आर्चिबाल्ड को पड़ीवह तत्काल शिमला पहुँचा और वायसराय लार्ड मिण्टो से साम्प्रदायिक आधार पर मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की मॉंग की। इसी निमित्त 1 अक्टूबर 1906 को एक शिष्टमण्डल सर आगाखॉं के नेत्तृत्व में भेजा गया। ब्रिटिश सरकार तो "फूट डालो और राज्य करो" (Divide and rule) के अनुसार इसके लिए पहले से तैयार बैठी थी। उसी दिन शाम को वायसराय की पत्नी लेडी मिण्टो के नाम भेजे गये पत्र में एक अधिकारी ने लिखा था-

“A big thing has happened today. A work of statesmanship that will affect India and Indian history for a long time has been done. It is nothing less than the pulling out of 63 million people from joining the ranks of seditous opposition.”

इस प्रकार 6 करोड़ मुसलमानों को राष्ट्र की मुख्य धारा से काटकर हिन्दू और हिन्दुस्तान दोनों का कट्‌टर विरोधी बना दिया गया। उसी वर्ष इण्डियन मुसलिम लीग की स्थापना हुई।

यह थे आधुनिक भारत के निर्माताओं और समाज-सुधारकों में अग्रणी माने जानेवाले सर सैयद अहमद खॉं।

सर सैयद अहमद खॉं को खुश करने के लिए तत्कालीन ले. गवर्नर सर विलियम म्योर ने उन्हें अपना सलाहकार बना दिया। सर सैयद अहमद खॉं प्रभावशाली मुसलमान थे। अत: अंग्रेज जानबूझकर उन्हें बढावा दे रहे थे। सन्‌ 1871 में सरकार की ओर से बीस एकड़ भूमि पर एक विशाल भवन बनाकर उनके इलाहाबाद में स्थायी रूप से रहने के लिए दे दिया गया। सर सैयद ने अपने बेटे के नाम पर इस कोठी का नाम "महमूद मंजिल" रक्खा। वास्तव में यह देश में अंग्रेजी राज्य को सुदृढ करने लिए सुविचारित योजना के अन्तर्गत मुसलमानों को खुश करने की एक चाल थी। विधि की विडम्बना कहें या अंग्रेजों का दुर्भाग्य कि भारत में ब्रिटिश सत्ता को सुदृढ करने की नीयत से बनाई गई यह कोठी कालान्तर में पं. मोतीलाल नेहरू द्वारा बीस हजार रुपये में खरीदी जाकर "आनन्द भवन" के नाम से अंग्रेजी हकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए देश के क्रान्तिकारी नेताओं का जुझारू अड्‌डा बन गई और अन्तत: वह "स्वराज भवन" के नाम से प्रसिद्ध हुई।

अंग्रेज कृतघ्न नहीं निकला। मार्च 1947 में वायसराय बनकर भारत के लिए रवाना होने से पूर्व लार्ड माउण्टबेटन भारत की स्वतन्त्रता के कट्‌टर विरोधी चर्चिल से मिलने गये। इंग्लैंड की सहायता करने के लिए मुसलमानों का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण कराते हुए चर्चिल ने माउण्टबेटन से कहा-

“I am not going to tell you how to do it. But I tell you one thihng- whatever arrangements you make, you must see that you don’t harm a hair on the head of a single Muslim. They are the people who have been our friends and they are the people Hindus are going to oppress. So you must take steps that they can’t do it.” -Indian Express Magazine, April 4, 1982.

मैं यह नहीं बताऊँगा कि तुम कैसे करोपरन्तु मैं तुम्हें एक बात अवश्य कहूँगा कि तुम जो भी व्यवस्था करोइस बात का ध्यान अवश्य रखना कि किसी एक भी मुसलमान के सिर का बाल बॉंका न हो। यही वे लोग हैं जो हमारे मित्र रहे हैं और यही लोग हैं जिनका हिन्दू दमन करेंगे। अत: तुम ऐसी व्यवस्था करना जिससे वे ऐसा कुछ न कर सकें। 

लार्ड माउण्टबेटन ने वैसा ही किया। आती हुई स्वाधीनता को तो वह न रोक सकाकिन्तु भारत का बंटवारा इस प्रकार किया कि भारत का एक भाग काटकर पाकिस्तान के रूप में एक स्वतन्त्र देश मिल गया और शेष भारत पर मुसलमानों का अधिकार ज्यों-का-त्यों बना रह गया। क्योंकि पाकिस्तान की सृष्टि ही मुसलमानों की मतान्धता के कारण साम्प्रदायिकता के आधार पर हुई थी । इसलिए भारत में ही नहीं भारत पाक सीमाओं पर भी हिन्दू-मुस्लिम समस्या और दो देशों के परस्पर वैमनस्य के कारण संघर्ष की स्थिति निरन्तर बनी रहती है। अल्पसंख्यकों के नाम पर मिलनेवाली अतिरिक्त सुविधाओं के कारण हिन्दू अपने को हीन-भावना से ग्रस्त अनुभव करने लगा है। कुल मिलाकर देश की स्थिति आज 1947 से पूर्व की अपेक्षा अधिक भयावह है।

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"Hazrat is neither a Muhtsib (accountant), who is not afraid of the Durre, nor is the Qazi, whose fatwa is afraid of Dar (the cross). You would have gained freedom from the world at any time. It is better that you get rid of the religious Tehirs, else if a burnt Muslim does something, then everyone knows about Khairikhahi Islam. Diljale is bad"

 

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