समय की उपयोगिता- भोजन-वस्त्र में रुचि की भिन्नता की तरह सम्प्रदायों को वैयक्तिक अभिरुचि का विषय माना जा सकता है, किन्तु धर्म के सर्वोच्च सिंहासन पर उसे नहीं बिठाया जा सकता। एकांगी दृष्टिकोण, पक्षपात का दुराग्रह धर्म कैसे हो सकता है? विवेक और औचित्य को यदि आधार माना जाय तो प्रायः सभी सम्प्रदाय वालों को अपने-अपने...
मनोरंजन के नाम पर दिशाहीनता-
फिल्मों के द्वारा सस्ता मनोरंजन और दूरदर्शन तथा ओटीटी प्लेटफार्म के धारावाहिक हमारे समाज को दिग्भ्रमित करके उसमें विकृतियाँ पैदा कर रहे हैं। सरकार को सिनेमा पर कठोर नजर रखनी चाहिए और इसे केवल धन लुटेरों के हाथ में नहीं छोड़ देना चाहिए। आधुनिक धारावाहिकों और फिल्मों में सामाजिक यथार्थ को सही और रचनात्मक रूप में पेश किया जाना आवश्यक है। परिवार के सभी सदस्यों को साफ-सुथरा मनोरंजन या हमारी संस्कृति के अनुरूप कहानियाँ मिलें, जिससे हमारे देश की समृद्ध संस्कारी परम्परा की रक्षा हो।
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