समय की उपयोगिता- भोजन-वस्त्र में रुचि की भिन्नता की तरह सम्प्रदायों को वैयक्तिक अभिरुचि का विषय माना जा सकता है, किन्तु धर्म के सर्वोच्च सिंहासन पर उसे नहीं बिठाया जा सकता। एकांगी दृष्टिकोण, पक्षपात का दुराग्रह धर्म कैसे हो सकता है? विवेक और औचित्य को यदि आधार माना जाय तो प्रायः सभी सम्प्रदाय वालों को अपने-अपने...
मनुष्य का परम धर्म-
अभी तक इतनी भ्रांति फैली हुई हैं कि लोग ईश्वर को ही जगत का उपादान कारण मानते हैं। त्रैतवाद को न मानने पर भ्रांति ही बनी रहेगी। इसी मान्यता के आधार पर मनुष्यों के कर्तव्यों का निर्धारण किया गया है। प्रकृति का उपभोग किया जाता है तथा ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना की जाती है। आर्यसमाज के दूसरे नियम में इस बात को स्पष्ट कर दिया गया है। तीसरे नियम में बताया गया है कि वेद का पढना पढाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। वेद का स्वाध्याय, अनुशीलन तथा प्रचार ही परम धर्म है। अब कोई सन्देह नहीं रह जाता कि मनुष्य का धर्म क्या है। वेदानुकूल आचरण व व्यवहार करना ही धर्म है।
Nature is used and God is praised, prayed and worshipped. This has been clarified in the second rule of Arya Samaj. The third rule states that reading, teaching and listening to the Vedas is the ultimate religion of all Aryans. Self-study, practice and propagation of the Vedas is the ultimate religion. Conduct and behavior according to the Vedas is religion.
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