Call Now : 9302101186, 9300441615 | MAP
     
Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna is the only Mandir in Indore controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
arya samaj marriage indore india legal
  • शूद्र को वेदाध्ययन अधिकार - 2

    पूर्व मीमांसा दर्शनकार जैमिनि के सम्बन्ध में एक और भयङ्कर भ्रान्ति

    वेद के उपाङ्ग माने जाने वाले छह वैदिक दर्शनों पर अर्वाचीन टीकाकारों ने मूल से हटकर अपनी मनमानी काल्पनिक व्याख्या के आधार पर यह सिद्ध करने का असफल प्रयास किया कि इन छहों दर्शनों में मौलिक सिद्धान्तों पर परस्पर मतभेद है। ऋषि दयानन्द ने इन दर्शनों के मूल के अध्ययन के आधार पर उन लोगों के इस प्रयास को गलत साबित करते हुए यह सिद्ध किया कि इन वैदिक दर्शनों में परस्पर कहीं भी कोई भी विरोध नहीं है। सभी शास्त्रों और वेद तक इस मौलिक अध्ययन को स्वामी दयानन्द ने आधार बनाया और शास्त्रों के सम्बन्ध में अन्धानुकरण से प्रचलित अनेक भ्रान्तियों को दूर किया। मूल से हटकर शास्त्रों की व्याख्या करने के कारण सभी शास्त्रों की नव्य परम्परा प्रचलित हुई जो अपने आप में एक अलग शास्त्र बन गया, जिसका नाम तो प्राचीन शास्त्र के आधार पर बना रहा किन्तु वह प्राचीन शास्त्र से बहुत भिन्न थी। इसके कारण मूल शास्त्र के मौलिक सिद्धान्त उन नव्य व्याख्याओं के कारण नीचे दब गये और मूल शास्त्र का वास्तविक स्वरूप और अभिप्राय ही तिरोहित हो गया। स्वामी दयानन्द जी महाराज ने इसी मूलभूत भयंकर भूल को पकड़ा और शास्त्रों के मूल की ओर लौटने का क्रान्तिकारी नारा दिया, जिसे आर्ष ग्रन्थों की परम्परा कहा जाता है।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    श्री और लक्ष्मी में अन्तर व लक्ष्मी का वाहन उल्लू क्यों
    Ved Katha Pravachan _46 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    किन्तु आर्यसमाज और ऋषि दयानन्द के भक्त कहलाने वाले कुछ आधुनिक विद्वान्‌ ऋषि दयानन्द के ही इस नारे को भूल गये और मूल से हटकर शास्त्रों की वही गलत व्याख्या कर रहे हैंजिसकी चेतावनी स्वामी दयानन्द ने दी थी।

    "सर्वहितकारी" 14 अप्रैल 2004 के अंक में डॉ. सुदर्शनदेव आचार्य का "जैमिनिमत समीक्षा-शूद्र को ब्रह्मविद्या एवं वेदाध्ययन अधिकार" शीर्षक से लेख छपा है। इस लेख में उन्होंने "जैमिनि का मत" देते हुये वेदान्तदर्शन का मध्वादिष्वसम्भवादनधिकारं जैमिनि: (वेदान्त 1.3.31.1) सूत्र उद्‌धृत करते हुए लिखा है कि "जैमिनि मुनि शूद्र को वेदाध्ययन का अधिकार नहीं मानते हैं।" वेदान्त का अगला सूत्र 1.3.32 भी अपनी बात के समर्थन में उद्‌धृत कियाजिसमें उन्होंने यजुर्वेद के मन्त्राश "त्रीणि ज्योतींषि सचते" ज्योतिषी शब्द की व्याख्या को उद्‌धृत करते हुए तीन ज्योतियों की अपनी मनमानी व्याख्या "ब्राह्मणक्षत्रियवैश्य" करके कहा है कि जैमिनि मुनि इस मत्रांश के आधार पर ब्राह्मणक्षत्रिय और वैश्य का ही वेदाध्ययन अधिकार मानते हैं। वेदान्त का अगला सूत्र "भावं तु बादरायणोऽस्ति हि" (1.3.32)की अपनी मनमानी व्याख्या के आधार पर पण्डित जी कहते हैं कि "बादरायण अर्थात्‌ वेदव्यास" शूद्रों का वेदाध्ययन अधिकार मानते हैं जो जैमिनि के विरोध में है।

    यहॉं भयङ्कर भूल तो यह है कि यहॉं शूद्रों का प्रसङ्ग है ही नहीं। वेदान्त के ये सूत्र शूद्रों के प्रसङ्ग-प्रकरण के हैं ही नहीं। शूद्रों का प्रकरण-प्रसङ्ग तो दुर्जनतोषन्याय से वेदान्त के अगले सूत्र "शुगस्य तदनादरश्रवणात्‌ तदाद्रवणात्‌ सूच्यते हि" (1.3.34) सूत्र से प्रारम्भ होता है जो वेदान्त के 1.8.38 वें सूत्र तक चलता है।

    पं. सुदर्शनदेव जी को यह तो पता ही होना चाहिये कि सूत्रों में अनुवृत्ति अगले सूत्र से पिछले सूत्र में नहीं आती अपितु पिछले सूत्र से अगले सूत्र में जाती है। यहॉं शूद्र का प्रकरण वेदान्त के 1.3.34 (चौंतीसवें) सूत्र से प्रारम्भ होता है जबकि जैमिनि के मत को दिखलाने वाला सूत्र 1.3.31 (इकत्तीसवां) है जो शूद्र के प्रकरण वाले सूत्र से तीन सूत्र पहले है। कितनी भयङ्कर भ्रान्ति के शिकार हैं पं. सुदर्शनदेव जी।

    वस्तुत: जैमिनि के मत को और बादरायण के मत को दिखलाने वाले सूत्रों का प्रकरण मनुष्य और देवताओं का प्रकरण है जो वेदान्त के "हृद्यपेक्षया तु मनुष्याधिकारत्वात्‌" वेदान्त 1.3.25 से प्रारम्भ होता है जिसका अगला ही सूत्र है "तदुपर्यपि बादरायण: सम्भवात्‌" वेदान्त (1.3.26) इस प्रसंग में स्पष्ट ही "मनुष्याधिकारत्वात्‌" शब्द है और अगले सूत्र का "तदुपर्यपि" शब्द मनुष्यों से ऊपर देवों के सम्बन्ध में वही बात करता है। यह प्रसङ्ग "देवताधिकरण" प्रसङ्ग वेदान्त में कहलाता है जो 1.3.33 तक चलता है। इस प्रसङ्ग में कहीं भी शूद्र शब्द नहीं है तथा जैमिनि और बादरायण द्वारा इन सूत्रों में प्रकट किया गया मत शूद्र के वेदाध्ययन-अधिकार के सम्बन्ध में बिल्कुल नहीं हैअपितु मनुष्य और देवताओं के सम्बन्ध में है और वह मतभेद भी कोई सैद्धान्तिक मतभेद नहीं अपितु एक शास्त्रीय प्रक्रिया के सम्बन्ध में दो विकल्पों के सम्बन्ध में मतभेद नहीं अपितु  सुझावमात्र है। इसकी व्याख्या की यहॉं अपेक्षा नहीं है। यहॉं हम केवल यह दर्शाना चाहते हैं कि जैमिनि और बादरायण के सम्बन्ध में मतभेद प्रकट करने वाले जो सूत्र पं. सुदर्शनदेवजी ने उद्‌धृत किये हैंवे शूद्र सम्बन्धी प्रकरण के हैं ही नहीं। कहीं का शिर कहींऔर कहीं की टांग कहीं जोड़कर प्रकरण को सर्वथा काटकर शास्त्र पर मिथ्यारोप नहीं चलेगा। जैमिनि पर यह मिथ्या आरोप पण्डित जी के शास्त्र सम्बन्धी अज्ञान का सूचक है। इस प्रसङ्ग की अन्य विद्वानों की भी यदि ऐसी व्याख्या है तो वह भी भ्रान्त है।

    पुनश्र्च जैमिनिमुनि ने "ज्योतींषि" की व्याख्या के लिये उक्त मन्त्र उद्‌धृत भी नहीं किया और न जैमिनि ने कहीं भी "त्रीणि ज्योतींषि" मन्त्रांश की व्याख्या ब्राह्मणक्षत्रिय और वैश्य को ही तीन ज्योतियॉं बतलाया है। क्या श्री सुदर्शनदेव जी जैमिनि द्वारा की गई इस मन्त्रांश की व्याख्या दिखला सकते हैं कि "तीन ज्योतियों से अर्थात्‌ ब्राह्मणक्षत्रियवैश्य से संयुक्त रहता हैचतुर्थ शूद्र से नहीं?" इस मनमानी व्याख्या द्वारा श्री सुदर्शनदेव जी वेद पर भी यह आरोप लगा रहे हैं कि वेद शूद्र को ज्योति नहीं मानता। वेदमन्त्र में वर्णित तीन ज्योतियॉं कौनसी हैं इसकी व्याख्या का यहॉं प्रसंग नहीं हैक्योंकि यह मन्त्र जैमिनि ने उद्‌धृत नहीं किया है और न ही यह शूद्र के वेदाध्ययन अधिकार का प्रसङ्ग है। यहॉं उक्त प्रसङ्ग का इतना निष्कर्ष देना पर्याप्त है कि जैमिनि मानवमात्र के अधिकार के पक्ष में है। जबकि बादरायण मनुष्यों से ऊपर देवताओं की भी बात करते हैं। सूत्र में "अपि" शब्द से मनुष्य तो अभिप्रेत हैं ही।

    rishi dayanand

    अब रहा अगला प्रसङ्ग जो वेदान्त सूत्र 1.3.34 "शुगस्य तदनादरश्रवणात्‌ तदाद्रवणात्‌ सूच्यते हि" से प्रारम्भ होता है जिसे श्री सुदर्शनदेव जी ने उल्टवासी करके (उल्टीकला) पहले के प्रसङ्ग से भ्रान्तिवश जोड़कर जैमिनि ऋषि पर मिथ्यारोप मढ डाला है। वस्तुत: वेदान्तदर्शन की व्याख्या में जितनी खेंचतानी हुई है उतनी सम्भवत: और दर्शनों के साथ नहीं हुई। वेदान्त की भिन्न-भिन्न व्याख्या के आधार पर पांच प्रकार के भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय तो प्रसिद्ध हैं हीयथा अद्वैतवादशुद्ध अद्वैतवादविशिष्ट अद्वैतवादद्वैत-अद्वैतवाद आदि। इनमें शङ्कराचार्य अद्वैतवादी होते हुये भी यहॉं "शुगस्य" की व्याख्या शूद्र करके शूद्र का वेदाध्ययन अधिकार का प्रसङ्ग उठाते हैं जो वेदान्त सूत्र 1.3.38 तक चलता है और वेदान्त के रचयिता स्वयं वेदव्यास के नाम पर यह सिद्ध करते हैं कि शूद्रों को वेदाध्ययन अधिकार नहीं है । क्योंकि इस प्रसङ्ग में वेदव्यास के अतिरिक्त और किसी मुनि का नाम उल्लिखित नहीं है। अत: इस प्रसंग के सूत्र देवव्यास की ही मान्यता ज्ञापित करते हैं। शंकर आचार्य ने इस प्रसङ्ग के अन्तिम सूत्र श्रवणाध्ययनार्थप्रतिषेधात्‌ स्मृतेश्र्च (1.3.38) पर स्मृति का प्रमाण देते हुये लिखा कि श्रवणे त्रपुजतुभ्यां श्रोत्रपूर्णम्‌ और उच्चारणे जिह्वाच्छेद:। यदि शूद्र वेदमन्त्र सुन ले तो उसके कानों में त्रपु और जतु भर दो और यदि वह वेदमन्त्र उच्चारण करे तो उसकी जिह्वा काट लो। यह व्याख्या शंकराचार्य की है जो स्वयं वेदव्यास कोजो वेदान्त के रचयिता हैं इस कटघड़े में खड़ा करते हैं जैमिनि मुनि को नहीं। श्री सुदर्शनदेव जी पर भी लगता है शंकराचार्य का जादू चढ गयाकिन्तु आधा। इसीलिये उन्होंने वेदव्यास को नहीं जैमिनि मुनि के गले में फंदा फिट कर दिया।

    वस्तुत: यहॉं "शुगस्य" की व्याख्या शंकराचार्य आदि के आधार पर शूद्र करना और उसे वेदाध्ययन अधिकार से वेदव्यास के नाम पर भी वञ्चित रखना शास्त्र का अनर्थ है। इसीलिये स्वामी दयानन्द ने ये सभी भ्रान्त व्याख्याएं निरस्त करते हुये कहा कि व्यासमुनिकृत वेदान्त पर जैमिनिवात्स्यायन या बोधायन आदि मुनि की व्याख्या और जैमिनि मुनिकृत पूर्व मीमांसा पर व्यासमुनिकृत व्याख्या पढें। जैमिनि ने वेदान्त पर और व्यास ने पूर्वमीमांसा पर व्याख्यायें लिखी थीं जो सर्वथा प्रामाणिक थीं। इससे यह भी स्पष्ट है कि जैमिनि और व्यास में परस्पर कोई विरोध नहीं था और न है। व्यास ने जैमिनि को आदर देने के लिये अपने वेदान्तदर्शन में ग्यारह बार स्मरण किया है और इसी प्रकार जैमिनि ने आदरार्थ बादरायण को अपने पूर्व मीमांसा में स्मरण किया है। इन दोनों में कहीं भी सैद्धान्तिक विरोध मानना अपनी अज्ञानता प्रकट करना है। यदि यहॉं शूद्र का प्रकरण वेदव्यास शास्त्रकार को अभिप्रेत होता तो "शुक्‌" शब्द के स्थान पर स्पष्ट ही "शूद्र" शब्द का पाठ होता। इन सब सूत्रों की व्याख्या का यहॉं प्रसङ्ग नहीं है। यहॉं केवल हम यह दिखलाना चाहते हैं कि शङ्कराचार्य और उनके अन्धानुकरणकर्त्ता यहॉं जो शूद्र का प्रकरण समझकर "शुगस्य" आदि सूत्रों द्वारा स्वयं वेदव्यास पर भी शूद्र को वेदाधिकार से वञ्चित करने का आरोप लगाते हैंवे कितने भ्रान्त हैं। यदि दुर्जनतोषन्याय से इसे शूद्र का प्रकरण मान भी लें तो भी प्रकरणान्तर होने से जैमिनि पर तो यह आरोप बनता ही नहीं।  

    ऋषि दयानन्द ने यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्य:ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च" आदि यजुर्वेद के मन्त्र के आधार पर जो शूद्रों को वेदाध्ययन अधिकार सिद्ध किया वह भी जैमिनि के पूर्व मीमांसा के नियमों के आधार पर व्याख्या करके किया। इस बात का पता सम्भवत: विद्वानों को नहीं है। जैमिनि का सूत्र चोदनालक्षणोऽर्थो धर्म: (1.1.2) यह नियम निर्धारित करता है कि वेदमन्त्रों में जो विधि वाक्य हैजो विधिलिड्‌ या लोट्‌ आदि प्रत्ययों के द्वारा विधान किया जाता है वह धर्म है। और उक्त मन्त्र में "आवदानि" शब्द में विधि है जो लोट्‌ द्वारा विहित है। अत: जैमिनि के इस नियम के अनुसार वेदाध्ययन सबका धर्म है चाहे वह कोई भी वर्ण हो। इसी जैमिनि के नियम के आधार पर स्वामी दयानन्द ने आर्यसमाज के तीसरे नियम में धर्म शब्द का प्रयोग किया- "वेद का पढना-पढाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।" यदि जैमिनि शूद्रों को वेदाध्ययन अधिकार से वञ्चित  करते तो स्वामी दयानन्द जैसा अदम्य व्यक्ति उसका अवश्य खण्डन करता। किन्तु स्वामी दयानन्द ने कहीं भी जैमिनि के विरोध में एक शब्द भी नहीं लिखा और न ही जैमिनि और वेदव्यास में कहीं सैद्धान्तिक विरोध बतलाया। अपितु वेद के उपाङ्ग माने जाने वाले इन छओं दर्शनों में परस्पर समन्वय बतलाया और इनमें विरोध मानने वालों का पुरजोर खण्डन किया। जैमिनि मनुष्यमात्र का वेदाध्ययन अधिकार मानते हैं। अपने पूर्व मीमांसा दर्शन में भी जैमिनि ने कहीं भी शूद्र का वेदाध्ययन अधिकार निषिद्ध नहीं किया। जैमिनि स्पष्ट रूप से मनुष्यमात्र के लिये कर्म और फलों का विधान करते हैं। वेदाध्ययन भी एक कर्म है और उसका भी कोई फल होता है। अत: वह भी मनुष्यमात्र के लिये हैउसमें शूद्र आदि का कोई भेद नहीं है। जैमिनि मुनि ही अपने सूत्रों के अनुसार वेदमन्त्र की व्याख्या करके वेदाध्ययन को सबका धर्म घोषित करते हैं।

    मेरा विद्वानों से नम्र निवेदन है कि शास्त्र की व्याख्या बड़ी सावधानी से करेंउसकी टीका की बजाय मूल को खोजें। इन्हीं भूलों से सभी आर्षशास्त्रों का मूल अभिप्राय नष्ट हो गयाइसी भूल से वेद का अनर्थ हुआ और इसी भूल से सावधान करते हुये ऋषि दयानन्द ने स्वत: प्रमाण और परत: प्रमाण की कसौटी दी जो वेद के अतिरिक्त वैदिक शास्त्रों पर भी लागू होती हैजिनमें ऋषियों के शुद्धपवित्रसरलवास्तविक और मानवमात्र का कल्याण करने वाले भाव छुपे हुये हैं। किसी ऋषि पर इतना गम्भीर निराधार आरोप लगाना बड़ा जघन्य अपराध हैब्रह्महत्या है। (सर्वहितकारी - 21 अप्रैल 2004) - डॉ. महावीर मीमांसक

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmarriagehelpline.com 

     

    Here, fearfully forgetting that this is not the case of the Shudras. These sutras of Vedanta do not belong to the episode of Shudras. The case of the Shudras begins with the next sutra "Shugasya tadanadrasravanaat tadadravanatya sukhyate hi" (1.3.34) from Durjantoshanayya which runs to the 1.8.38th sutra of Vedanta.

     

    Shudras right to study the Vedas-2 | Arya Samaj Indore - 9302101186 | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Mumbai City - Mumbai Suburban - Jaipur - Jaisalmer - Dindori - Guna | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | शूद्रों को वेद अध्ययन अधिकार-2 | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore |  Arya Samaj Marriage | Arya Samaj in Madhya Pradesh - Chhattisgarh | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service.

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | ज्ञान का अथाह भण्डार वेद

  • सत्यार्थप्रकाश की प्रासंगिकता

    ऋषि दयानन्द जिस समय सन्‌ 1860 में गुरु विरजानन्द जी के पास विद्याध्ययन के लिये पहुँचे, उस समय उनकी आयु 36 वर्ष की थी। 1863 में उन्होंने अपने गुरु से दीक्षा ली और उनके पास से अध्ययन समाप्त कर जीवन-क्षेत्र में उतर पड़े। इस समय वे 39-40 वर्ष के हो चुके थे। विरजानन्द जी के पास उन्होंने जो कुछ सीखा वही उनकी वास्तविक शिक्षा थी। क्योंकि इससे पहले वे जो कुछ पढ आये थे, उसे विरजानन्द जी ने भुला देने की उनसे प्रतिज्ञा ली थी। इस प्रकार ऋषि दयानन्द जी की यथार्थ शिक्षा 1960 से 1963 तक अर्थात्‌ कुल तीन वर्ष हुई थी। उन्होंने पीछे चलकर अपने जीवनकाल में जितने व्याख्यान दिये, जितने ग्रन्थ लिखे, जितने शास्त्रार्थ किये, वह इन तीन वर्षों के अध्ययन का ही परिणाम था। इसी से स्पष्ट होता है कि इन तीन सालों में उन्होंने जो पाया था वह कितना मूल्यवान था।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वेद सन्देश- विद्या एवं ज्ञान प्राप्ति के चार चरण
    Ved Katha Pravachan _35 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    अपने गुरु विरजानन्द जी से ऋषि दयानन्द ने जो गुर पाया था वह आर्ष तथा अनार्ष ग्रन्थों में भेद करना था। 36 वर्ष की आयु से पहले उन्होंने जो कुछ पढा था वह अनार्ष ग्रन्थों का अध्ययन था। आर्ष ग्रन्थों के अध्ययन ने उनके जीवन, उनके विचारों में जो क्रान्ति उत्पन्न कर दी उससे भारत के पिछले वर्षों का इतिहास बन गया।

    इस क्रान्ति का मूल स्रोत सत्यार्थ प्रकाश है। सत्यार्थप्रकाश 1874 में लिखा गया। मुरादाबाद के राजा जयकृष्णदास जी काशी में डिप्टी कलेक्टर थे तब ऋषि दयानन्द काशी पधारे। राजा जयकृष्ण दास ने ऋषि से कहा कि आपके उपदेशामृत से वे ही व्यक्ति लाभ उठा सकते हैं जो आपके व्याख्यान सुनते हैं। जिन्हें आपके व्याख्यान सुनने का अवसर नहीं मिलता उनके लिए अगर आप विचारों को ग्रन्थ रूप में लिख दें, तो जनता का बड़ा उपकार हो। ग्रन्थ के छपने का भार राजा जयकृष्णदास ने अपने ऊपर ले लिया। यह आश्चर्य की बात है कि यह बृहत्कार्य तथा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ, जिसे पं. गुरुदत्त विद्यार्थी ने 14 बार पढकर कहा कि हर बार के अध्ययन से उन्हें नया रत्न हाथ आता है, कुल साढे तीन महीनों में लिखा गया।

    केवल साढे तीन मास में- सत्यार्थप्रकाश का गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि इसमें 377 ग्रन्थों का हवाला है। इस ग्रन्थ में 1542 वेद-मन्त्रों या श्लोकों के उद्धरण दिये गये हैं। चारों वेद, सब ब्राह्मण ग्रन्थ, सब उपनिषद्‌, छहों दर्शन, अट्‌ठारह स्मृति, सब पुराण, सूत्रग्रन्थ, जैन-बौद्ध ग्रन्थ, बायबल, कुरान इन सबके उद्धरण ही नहीं, उनके रेफरेंस भी दिये गये हैं। किस ग्रन्थ में कौन-सा मन्त्र या श्लोक या वाक्य कहॉं है, उसकी संख्या क्या है यह सब कुछ इस साढे तीन महीनों में लिखे ग्रन्थ में मिलता है। आज का कोई रिसर्च स्कालर अगर किसी विश्वविद्यालय की संस्कृत की अप-टु-डेट लायब्रेरी में, जहॉं सब ग्रन्थ उपलब्ध हों, इतने रेफरेंस वाला कोई ग्रन्थ लिखना चाहे तो भी उसे सालों लग जायें, जिसे ऋषि दयानन्द ने साढे तीन महीनों में तैयार कर दिया था। साधारण ग्रन्थ की बात दूसरी है। सत्यार्थप्रकाश एक मौलिक विचारों का ग्रन्थ है। ऐसा ग्रन्थ जिसने समाज को एक सिरे से दूसरे सिरे तक हिला दिया। जिन ग्रन्थों ने संसार को झकझोरा है उनके निर्माण में सालों लगे हैं। कार्ल मार्क्स ने 34 वर्ष इंग्लैण्ड में बैठकर "कैपिटल" ग्रन्थ लिखा था जिसने विश्व में नवीन आर्थिक दृष्टिकोण को जन्म दिया।  मार्क्स के ग्रन्थ ने यूरोप का आर्थिक ढॉंचा हिला दिया तथा ऋषि दयानन्द के ग्रन्थ ने भारत का सांस्कृतिक तथा सामाजिक ढॉंचा हिला दिया।

    क्रान्तिकारी विचारों का खजाना- सत्यार्थप्रकाश चुने हुए क्रान्तिकारी विचारों का खजाना है। ऐसे विचारों का जिन्हें उस युग में कोई सोच भी नहीं सकता था। समाज की रचना जन्म के आधार पर नहीं होनी चाहिए, सत्यार्थ-प्रकाश का यही एक विचार इतना क्रान्तिकारी है कि इसके व्यवहार में आने से हमारी 60 प्रतिशत समस्याएँ हल हो जाती हैं। ऐसे संगठन में जन्म से न कोई ऊँचा, न कोई नीचा, जन्म से न कोई गरीब, न कोई अमीर, जो कुछ हो कर्म हो। ऐसी स्थिति में कौन-सी समस्या है जो इस सूत्र से हल नहीं हो जाती।

    शिक्षा क्षेत्र में गुरुकुल शिक्षा- प्रणाली का विचार सत्यार्थप्रकाश की ही देन है, जिसे पकड़ कर उत्तर भारत में जगह-जगह गुरुकुलों का जाल बिछ गया। आज भी हमारी शिक्षा-प्रणाली की जो छीछालेदार हो रही है, उसका इलाज गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली में ही निहित है।

    लोकमान्य तिलक ने कहा था-"स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।" दादा भाई नौरोजी ने भी "स्वराज्य" शब्द का प्रयोग किया था। इन सबसे पहले ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश के 8वें समुल्लास में लिखा था-"कोई कितना ही कहे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है।" ऋषि दयानन्द के ये वाक्य उस जगत्‌-प्रसिद्ध अंग्रेजी वाक्य से जिसमें कहा गया था- “Good government is no substitute for self-government”  से इतने मिलते-जुलते हैं कि 1874 में अंग्रेजों के राज्य में कोई व्यक्ति यह लिखने का साहस कर सकता था, यह जानकर आश्चर्य होता है।

    आज जिन समस्याओं को लेकर हम उलझे हैं, हरिजनों की समस्या, स्त्रियों की समस्या, गरीबी की समस्या, शिक्षा की समस्या, राष्ट्र-भाषा की समस्या, चुनाव की समस्या, नियम तथा व्यवस्था की समस्या, गोरक्षा की समस्या आदि कौन सी समस्या है जिसका हल सत्यार्थप्रकाश में मौजूद नहीं है और कौन-सा ऐसा हल आज के राजनीतिज्ञों ने ढूँढ निकाला हे, जो सत्यार्थ प्रकाश में पहले से नहीं है।

    वेदों के नाम पर-हिन्दू-समाज की सबसे बड़ी समस्या वेदों की थी। यहॉं हर-कोई हर बात के लिए वेदों का नाम लेता था। स्त्रियों तथा शूद्रों को वेद पढने का अधिकार क्यों नहीं? क्योंकि वेदों में लिखा है- "स्त्री शूद्रौ नाधीयताम्‌।" बाल-विवाह क्यों नहीं होना चाहिए? क्योंकि वेदों में लिखा है- "अष्टवर्षा भवेत्‌ गौरी नववर्षा च रोहिणी। पिता चैव ज्येष्ठो भ्राता तथैव च, त्रयस्ते नरकं यान्ति दृष्टवा कन्यां रजस्वलाम्‌।" जन्म से वर्णव्यवस्था क्यों मानें? क्योंकि वेद में लिखा है- "ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत्‌" - ब्राह्मण परमात्मा के मुख और शूद्र उसके पॉंव से उत्पन्न हुए हैं। जैसे मुख बाहु और बाहु मुख नहीं बन सकता, इसी प्रकार  ब्राह्मण शूद्र तथा शूद ब्राह्मण नहीं बन सकता। जब ऋषि दयानन्द ने यह देखा कि वेदों का नाम लेकर हर संस्कृत वाक्य को वेद कहा जा रहा है और वेदों का उद्धरण देकर वेद-मन्त्रों का अनर्थ किया जा रहा है, तब उन्होंने निश्चय कर लिया कि वेदों को ही केन्द्र बनाकर हिन्दू-समाज की रक्षा की जा सकती है और वह रक्षा तभी की जा सकती है, जब जन-साधारण की समझ में आ जाये कि वेदों में क्या कहा गया है।

    वैदिक वाड्‌मय के सम्बन्ध में ऋषि दयानन्द की खोज यह थी कि हर संस्कृत वाक्य तथा हर संस्कृत ग्रन्थ वेद नहीं है। ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्‌, स्मृति, पुराण, सूत्र-ग्रन्थ ये सब वेद नहीं हैं। इन ग्रन्थों में जो कुछ लिखा है वह अगर वेद-विरुद्ध है तो वह त्याज्य है, जो वेदानुकूल है वही  स्वीकार करने योग्य है। ऋषि दयानन्द का हिन्दू-समाज को कहना यह था कि अगर वेद को तुम अपनी संस्कृति का आधार मानते हो, तो इस पैमाने को लेकर चलना होगा। तुम जो चाहो वह वेद नहीं है, वेद जो है वह मानना होगा। इस कसौटी पर कसने से हिन्दू-समाज की 60 प्रतिशत रुढियॉं अपने आप गिर जाती हैं। इस विचारधारा को प्रकट करने के लिए उन्होंने दो शब्दों का प्रयोग किया-आर्ष ग्रन्थ तथा अनार्ष ग्रन्थ। अब तक संस्कृत साहित्य में इस दृष्टि को किसी ने नहीं अपनाया था। संस्कृत के हर ग्रन्थ में जो कुछ लिखा मिलता था वह प्रामाणिक मान लिया जाता था। ऋषि दयानन्द ने इस विचार को ध्वस्त कर दिया।

    वेदों के शब्द रूढिज नहीं- वेदों के सम्बन्ध में ऋषि दयानन्द की दूसरी खोज यह थी कि वेदों के शब्द रूढिज नहीं, यौगिक हैं। यद्यपि यह विचार नया नहीं था, निरुक्तकार का भी यही कहना था। तो भी वेदों के सभी भाष्यकारों ने वैदिक शब्दों के रूढि अर्थ ही किये थे। सायण, उव्वट, महीधर तथा उनके पीछे चलते हुए पाश्चात्य विद्वानों मैक्समूलर, राथ, विल्सन, ग्रासमैन ने मक्खी पर मक्खी मार अनुवाद किया था। सायण आदि एक तरफ वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते थे तो दूसरी तरफ उनमें इतिहास भी मानते थे, जो वेदों के ईश्वरीय ज्ञान होने के सिद्धान्त से टकराता था। इस बात की उन्हें कोई चिन्ता नहीं थी। असल में सायण का भाष्य किसी गम्भीर विद्वत्ता से नहीं किया गया था, वह एक विशिष्ट लक्ष्य को सामने रखकर किया गया था। दक्षिण के विजयनगर हिन्दू-राज्य के राजा हरिहर और बुक्का के वे मन्त्री थे। मुस्लिम संस्कृति राज्य में प्रतिष्ठित न हो जाये, इसलिए संस्कृत वाड्‌मय का प्रसार करना मात्र इस भाष्य का उद्देश्य था। यही कारण था कि सायण या महीधर के भाष्य गहराई तक नहीं गये और असंगत बातों के शिकार रहे। वह यज्ञों का समय था। इसलिए भाष्यकार समझते थे कि वेदों के अग्नि, वायु, इन्द्र आदि देवता सचमुच स्वर्ग से यज्ञों में पधारते हैं और दान-दक्षिणा आदि लेकर तथा यजमान को आशीर्वाद देकर स्वर्ग चले जाते हैं। पाश्चात्य विद्वानो को यह बात अपनी विचारधारा के अनुकूल पड़ती थी। उनका विचार विकासवाद पर आश्रित था। आदि में मानव जंगली था। जंगली आदमी सूर्य को, अग्नि को और वायु को देवता समझकर पूजे तो यह युक्तियुक्त प्रतीत होता है। पाश्चात्य विद्वान कहने लगे कि वैदिक ऋषि क्योंकि जंगली थे इसलिए अनेक देवताओं को पूजते थे। इस निष्कर्ष में सायण आदि के भाष्य उनके विचारों की पुष्टि करते थे।

    ऋषि दयानन्द ने इस विचार को भी ठोकर मार कर गिरा दिया। वेदों से ही उन्होंने सिद्ध किया कि अग्नि आदि नाम विभिन्न देवताओं के नहीं अपितु एक ही परमेश्वर के हैं।  ऋग्वेद में लिखा है-एकं सद्‌ विप्रा बहुधा वदन्ति अग्निं यमं मातरिश्वानमाहु। परमात्मा एक है, उसे अनेक नामों से स्मरण किया जाता है। इस एक मन्त्र से सारा का सारा विकासवाद कम-से-कम जहॉं तक वेदों का सम्बन्ध है, ढह जाता है।

    तीन प्रकार के अर्थ- ऋषि दयानन्द का कहना था कि वैदिक शब्दों के तीन प्रकार के अर्थ होते हैं- आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक। उदाहरणार्थ- इन्द्र का आधिभौतिक अर्थ अग्नि, विद्युत, सूर्य आदि है, आधिदैविक अर्थ राजा, सेनापति, अध्यापक आदि दैवीय गुणवाले व्यक्ति हैं, आध्यात्मिक अर्थ जीवात्मा, परमात्मा आदि हैं। इसी प्रकार अन्य शब्दों के विषय में कहा जा सकता है। इस कसौटी को सामने रखकर अगर वेदों को समझा जाये, तो न उनमें इतिहास मिलता है, न बहुदेवतावाद मिलता है, न जंगलीपन मिलता है, न विकासवाद मिलता है।

    वेदों के जितने भाष्यकार हुए हैं, इस देश के तथा विदेशों के उनमें सबसे ऊँचा स्थान ऋषि दयानन्द का है। अगर वेदों को किसी ने समझा तो ऋषि दयानन्द ने। अरविन्द घोष ने लिखा है-

     “In the matter of Vedic interpretation Dayanand will be honoured as the first discoverer of the right clues. Amidst the chaos and obscurity of old ingnorance and agelong misunderstanding, his was the eye of direct vision, that pierced the truth and fastened on that which was essential.”

    इस प्रकार इस युग के महायोगी श्री अरविन्द का कहना है कि जहॉं तक वेदों का प्रश्न है, दयानन्द सबसे पहला व्यक्ति था जिसने वेदों के अर्थों को समझने की असली कुञ्जी खोज निकाली। वेदों का अर्थ समक्षने के लिए सदियों से जिस अन्धकार में हम रास्ता टटोल रहे थे उसमें दयानन्द की दृष्टि ही इस अन्धकार को भेदकर यथार्थ सत्य पर जा पहुँचती थी।

    उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में अनेक समाज सुधारक हुए। ऋषि दयानन्द, राजा राममोहनराय, केशवचन्द्र सेन इसी युग की उपज थे। वे सब एक तरफ हिन्दू-समाज के पिछड़ेपन को देख रहे थे, दूसरी तरफ पश्चिमी देशों की प्रगतिशीलता को देख रहे थे। यह सब देखकर वे हिन्दू-समाज को रूढियों की दासता से मुक्त करना चाहते थे। ऋषि दयानन्द तथा दूसरों की विचारधारा में भेद यह था कि जहॉं दूसरे हिन्दू-धर्म, हिन्दू-संस्कृति तथा हिन्दुत्व को समाप्त करने पर तुल गये, वहॉं ऋषि दयानन्द ने हिन्दुओं को हिन्दु रखते हुए उन्हें नवीनता के नये रंग में रंग दिया। कोई वृक्ष जड़ के बिना नहीं खड़ा रह सकता है। जड़ कट जाये, तो वृक्ष गिर जाता है। जड़ को मजबूत बनाकर जो वृक्ष उठता है, वही टिका रहता है।

    कोई समाज अपने भूत के बिना नहीं जी सकता। भूत में पैर जमाकर भविष्य की तरफ बढना, पीछे भी देखना, आगे भी देखना यही किसी समाज के जीवन का गुर है। ऋषि दयानन्द ने इसी गुर को पकड़ा था। पीछे वेदों की ओर देखो, उसमें जमकर आगे भविष्य की ओर पग बढाओ। भूत को छोड़ दोगे तो वृक्ष की जड़ कट जाएगी। भविष्य की अनदेखी कर उठ नहीं सकोगे। यही सत्यार्थ प्रकाश का सन्देश है। - डॉ. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार 

    Contact for more info.-

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org 

    ----------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     

    The trick that Rishi Dayanand got from his Guru Virjanandji was to distinguish between joy and non-scripture. What he had read before the age of 36 was the study of non-human texts. The history of the last years of India became a history due to the revolution that arose in his life, his thoughts, by the study of the Aasha texts.

    The relevancy of Styarth Prakash the Light of Truth | Arya Samaj Indore - 9302101186 | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Katni - Khandwa - Pune - Raigad - Nagaur - Pali | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore |  Arya Samaj Marriage | Arya Samaj in Madhya Pradesh - Chhattisgarh | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service.

    Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | सत्यार्थप्रकाश की प्रासंगिकता | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • सफलता चाहते हैं तो एक लक्ष्य का पीछा करें

    किसी ने खूब कहा है- लक्ष्यरहित जीवन मल्लाहरहित नाव जैसा है। एक लक्ष्य चुनें और उसकी प्राप्ति में जुट जाएँ। ईश्वर-प्रदत्त अमूल्य जीवन को लक्ष्यविहीन रहकर पशुओं की तरह बरबाद कर देना कहॉं की बुद्धिमानी है? जीवन में प्रगति के लिए सबसे पहले एक सुनिश्चित लक्ष्य निर्धारित करना जरूरी है। यदि कोई लक्ष्य नहीं रखा जाता है, तो जीवन का प्रयोजन ही खत्म हो जाता है। जिसने लम्बे समय तक लक्ष्य-प्राप्ति का प्रयत्न किया, वही व्यक्ति अच्छा जीवन जी सकता है।

    Ved Katha Pravachan -12 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    लक्ष्य को चुनते समय एक बात का ख्याल रखें कि यह आपने सोच-समझकर चुना होन कि किसी को देखकर। यदि आपने सोच-समझकर लक्ष्य चुन लिया और लक्ष्यों की मृगतृष्णा में नहीं भटकेतो समझिए आपने आधा कार्य पूरा कर लिया। गाड़ी के लिए सिर्फ गति प्राप्त करना ही कठिन होता है। एक बार गति पकड़ लेने के पश्चात्‌ रास्ता तय करने में कोई खास परेशानी नहीं होती। परन्तु कभी-कभी ऐसा होता है कि अपने बहुमूल्य समय का उपयोग हम व्यर्थ की योजनाएँ बनाने में करने लगते हैं और अनेक लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। जब हम अनेक लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैंतो हमारी हालत उस हिरण के समान हो जाती हैजिसे तपते में भी चारों ओर सरोवर ही दिखाई देता है। अतः एक लक्ष्य सफलता की सीढ़ी है। प्रत्येक युवक को चाहिए कि वह अपने लक्ष्य के अनुरूप वातावरण का निर्माण करे। अच्छे वातावरण में रहना और बुरे वातावरण से बचना सफलता की एक बड़ी आवश्यकता है।

    वातावरण की प्रबलता को मानवीय विवेक और मनोबल से बदला जा सकता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैंजिनमें कई बार असफल होने वाले लोगों ने लगन तथा सतत पुरुषार्थ के बल पर अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया। पं. मदनमोहन मालवीय ने कहा था कि एक बार लक्ष्य निर्धारित करने पर सफलता अवश्य मिल जाती है। अगर आपका लक्ष्य एक है और उसकी प्राप्ति हेतु की जाने वाली अन्य भी परीक्षाओं में काम आ सकती हैतो विकल्प के रूप में एक जैसी अनेक परीक्षाओं में सफल हुआ जा सकता है। हॉंलक्ष्य के विपरीत मनोभावों की चंचलता के शिकार होकर यदि आप अन्धाधुन्ध या आनन-फानन में परीक्षाओं में बैठेंगेतो नतीजे सकारात्मक आने के अवसर शून्य के बराबर होंगे।

    एक लक्ष्य का निर्धारण ही सफलता तक ले जा सकता है। उदाहरणार्थएक ही स्टेशन से अनेक दिशाओं में गाड़ियॉं जाती हैं। स्टेशन पर उनकी पटरियॉं पास-पास ही होती हैं। किन्तु कुछ ही आगे कई मोड़ आ जाते हैंजो रेलगाड़ियों की दिशाओं को बदल देते हैं। रेलगाड़ियों के गन्तव्य में सैकड़ों किलोमीटर का फासला हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति स्टेशन पर खड़ी रेलगाड़ियों में से बिना अपने गन्तव्य स्थान को ध्यान में रखे किसी भी डिब्बे में बैठेतो वह कहीं भी पहुँच जाएगा। लेकिन यदि वह निश्चित गाड़ी में बैठेगातो निश्चित स्थान पर ही पहुँचेगा। विश्व इतिहास यह बताता है कि कोई भी दुर्भाग्य एक इच्छित लक्ष्य वाले युवकों को सफलता से नहीं रोक सकता। अनेक लक्ष्य उन कामनाओं की तरह होते हैंजो उबलते दूध की तरह खाली बरतन को भी भरा दिखाते हैंकिन्तु उबलता हुआ दूध कुछ समय पश्चात्‌ बैठ जाता है। इसके विपरीत एक लक्ष्य उस बाण की तरह होता हैजो निशाने पर पहुँचकर ही दम लेता है। कार्य कठिन लगे या उसके लिए अधिक परिश्रम करना पड़े तो निराश न हों।

    लक्ष्य तक पहुँचने में आने वाली कठिनाइयों का पूर्ण मनोबल से सामना करें। जो व्यक्ति स्वयं को नकारते हैंवे अपनी असफलता को बुलावा देते हैं। कारणवश असफलता मिल जाएतो भी उत्साह व साहस से इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहें। - कारूलाल जमड़ा

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org  

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     

    Somebody has said a lot - aimless life is like a boat without a boat. Choose a goal and start achieving it. Where is the wisdom of destroying God-given priceless lives like animals without aiming? In order to progress in life it is necessary to first set a definite goal. If no goal is set, then the purpose of life ends. The person who tried to achieve the goal for a long time can live a good life.

    Safalataa Chahate Hain To Ek Lakshya Ka Picha Kare | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Sheopur - Sehore - Seoni - Singrauli - Shahdol - Shajapur | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | सफलता चाहते हैं तो एक लक्ष्य का पीछा करें | Prerak Prasang Veer Bhagat Singh | Arya Samaj Indore MP Address | Arya Samaj  Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore | Arya Samaj in India | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj | Arya Samaj Marriage Service | Arya Samaj in Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Intercast Marriage | Hindu Matrimony in Indore , India | Intercast Matrimony | Marriage Bureau in Indore. 

    Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Query for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Plan for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Sanskar Kendra Indore | pre-marriage consultancy | Legal way of Arya Samaj Marriage in Indore | Legal Marriage services in Arya Samaj Mandir Indore | Traditional Vedic Rituals in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Wedding | Marriage in Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Pandits in Indore | Traditional Activities in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Traditions | Arya Samaj Marriage act 1937.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • साम्प्रदायिकता की समस्या और ऋषि दयानन्द

    साम्प्रदायिकता भारतीय समाज की चिर-परिचित समस्याओं में से प्रमुख विचारणीय समस्या रही है। वर्तमान युग में तो इस समस्या का राजनीतिकरण हो जाने के कारण यह अत्यधिक जटिल एवं चिन्तनीय हो गई है। साम्प्रदायिक विद्वेष, दंगे, उग्रवाद, आतंकवाद और अल्पसंख्यकवाद तथा बहुसंख्यकवाद की राजनीति ये समस्या के जाने-पहचाने चेहरे हैं, जो समय-समय पर राष्ट्रीय परिदृश्य में दृष्टिगोचर होते रहते हैं। कभी आक्रामक रूप में तो कभी सामान्य रूप में ये सामाजिक शान्ति, प्रगति और स्थायित्व के राष्ट्रीय तन्त्र को प्रभावित करते हैं।

    इस समस्या के समाधान हेतु समय-समय पर विभिन्न विचारकों ने समाधान भी प्रस्तुत किये हैं, जिनमें महात्मा गांधी का "आदर्शवादी समाधान" विशेष प्रसिद्ध है, जिसे "सर्वपन्थ समभाव" के रूप में जाना जाता है। स्वामी विवेकानन्द और सर्वपल्ली राधाकृष्णन प्रभृति दार्शनिकों का भी यही मन्तव्य है। इस दृष्टिकोण के अनुसार सभी पन्थ ईश्वर की ओर ले जाने वाले कल्याण-मार्ग हैं। इसलिए मानव-मात्र को सभी पन्थों के प्रति समान आदर भाव प्रदर्शित करना चाहिए। यह समाधान सभी पन्थों में निहित सत्य, परोपकार, पवित्रता, सेवा, करुणा जैसे उदात्त मूल्यों पर बल देता है। परन्तु इस "समभाव" से इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिलता है कि विभिन्न धार्मिक सम्प्रदाय परस्पर टकराते क्यों हैं? और इस टकराव में वे क्यों एक दूसरे का अस्तित्व मिटाने के लिए कटिबद्ध हो जाते हैं। साम्प्रदायिक टकराव से कैसे बचा जा सकता है, जिसकी सामाजिक समरसता, शान्ति और स्थायित्व के लिए आज नितान्त आवश्यकता है।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    बालक निर्माण के वैदिक सूत्र एवं दिव्य संस्कार-3

    Ved Katha Pravachan -14 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    ऋषि दयानन्द ने इस जटिल समस्या के ऊपर आदर्श और यथार्थ- दोनों दृष्टियों से विचार किया हैजो प्रस्तुत निबन्ध का प्रतिपाद्य विषय भी है। आदर्शवादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए उन्होंने विभिन्न मत-पन्थों में निहित शाश्वत मूल्यों एवं सिद्धान्तों को न केवल स्वीकार किया हैवरन्‌ उनके आधार पर समाज के पुन: संगठन पर बल भी दिया है। उनके शब्दों में, "आजकल बहुत विद्वान्‌ प्रत्येक मतों में हैंवे पक्षपात छोड़ सर्वतन्त्र सिद्धान्त अर्थात्‌ जो-जो बातें सबके अनुकूल हैंउनका ग्रहण करना और जो-जो बातें एक दूसरे के विरुद्ध हैंउनका त्याग कर प्रीति से बर्तें तो जगत्‌ का पूर्ण हित होेवे" (सत्यार्थ प्रकाश-भूमिका)

    ऋषि का यह सुविचारित मत है कि उन शाश्वत मूल्यों एवं सिद्धान्तों का मूल स्रोत "वेद" हैजो ईश्वरीय ज्ञान होने के कारण निर्भ्रान्त है। अतएव मानव-मात्र के लिए वेदों में प्रतिपादित धर्म-आचार अनुपालनीय एवं रक्षणीय है। दयानन्द इस देश के सांस्कृतिक इतिहास पर दृष्टिपात करते हुए भी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पॉंच हजार वर्ष से पूर्व वेद मत से भिन्न संसार में दूसरा कोई मत न था। क्योंकि वेदोक्त सब बातें विद्या से अविरुद्ध हैं। वेदों की अप्रवृत्ति होने के कारण महाभारत का युद्ध हुआ। उसके उपरान्त संसार में सर्वत्र अज्ञानान्धकार व्याप्त हो गया। मनुष्य की बुद्धि भ्रमित होने से जिसके मन में जैसा आया मत चलायाजिनकी संख्या आज सहस्त्र से कम नहींपरन्तु अध्ययन-मनन की सुविधा की दृष्टि से उन्हें चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- पुराणीजैनीकिरानी और कुरानी। (सत्यार्थ प्रकाश-एकादश समुल्लासअनुभूमिका)

    ऋषि दयानन्द ने इन चार वर्गों पर विचार करते हुए यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया है और उन कारणों की पहचान करने का प्रयास किया हैजिनके कारण एक सम्प्रदाय दूसरे से टकराता है। वे कारण हैंविभिन्न सम्प्रदायों की मिथ्या वेद-विरुद्ध मान्यताएं एवं अन्धविश्वास यथा मूर्तिपूजाअवतारवादपैगम्बरवादचमत्कारपाप-क्षमाश्राद्ध-तर्पणतीर्थ-महात्म्यगुरुडमवादनाम-स्मरणग्रहवाद आदि-आदि। साम्प्रदायिक संघर्ष की जड़ें इन भिन्न मान्यताओं में हैं। इसीलिए स्वामी दयानन्द अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के उत्तरार्द्ध की रचना करके विभिन्न सम्प्रदायों की असंगतता को सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैंजो संक्षेप में इस प्रकार है-

    ऋषि दयानन्द ने पुराणी वर्ग के अन्तर्गत वाममार्गियों से लेकर ब्रह्मसमाजियों तथा प्रार्थना समाजियों तक का उल्लेख किया है। पुराणी वर्ग के अन्तर्गत आने वाले सम्प्रदायों की प्रमुख मान्यताएं हैं- अवतारवादगुरुडमवादभाग्यवादमूर्तिपूजाश्राद्ध-तर्पणव्रततीर्थाटनगंगा-स्नानपाप-क्षमा और नाम-स्मरण आदि। ये वेदों को प्रमाण रूप में तो स्वीकार करते हैंकिन्तु तन्त्र-साहित्यपुराणउपपुराण आदि इनके मुख्य ग्रन्थ हैं। अत: इन्हें ही विशेष मान्यता प्रदान करते हैं। पुजारीमहन्तसाधुतान्त्रिकओझा और पण्डित आदि इन पौराणिक सम्प्रदायों के धर्म-गुरु तथा व्यवस्थापक माने जाते हैं। मूर्तिपूजा इनकी आय का नियमित स्रोत होता है तथा श्राद्ध-तर्पणव्रत-अनुष्ठान आदि आय के अन्य आवश्यक साधन माने जाते हैं।

    जैनी वर्ग के अन्तर्गत दयानन्द ने वेद-विरोधी चार्वाकजैनोंबौद्धों का समावेश किया है। उन्होंने इनकी समीक्षा "सत्यार्थप्रकाश" के द्वाद्वश समुल्लास में विशेष रूप से की है। दयानन्द के मतानुसार इन वेद विरोधी मतों का जन्म वैदिक धर्म में विकृति आने के कारण उसकी प्रतिक्रियास्वरूप हुआ। इन्होंने वैदिक साहित्य तथा परम्परा के समानान्तर अपने स्वतन्त्र साहित्य तथा परम्परा की रचना की। ऋषि दयानन्द के अनुसार यही कारण है कि पौराणिकों की भॉंति इन सम्प्रदायों में साधु-साध्वी आदि भी दृष्टिगोचर होते हैं। दयानन्द के मतानुसार मूर्तिपूजा जैनियों से प्रचलित हुई और बौद्धों तथा पौराणिकों में उत्कर्ष पर पहुँच गयी।

    किरानी वर्ग के अन्तर्गत दयानन्द ने यहूदी तथा ईसाई मजहबों का उल्लेख किया है जिनमें से दयानन्द युगीन भारतवर्ष में ईसाई धर्म अंग्रेज शासकों के धर्म के रूप में प्रतिष्ठापित था। जबूरतौरेत तथा इंजील इनकी धार्मिक पुस्तकें हैं। पैगम्बरवादपाप-क्षमाचमत्कार आदि इनकी प्रमुख धार्मिक मान्यताएं हैं।पादरीपोप आदि इनके धर्म-गुरु समझे जाते हैं। अनुयाइयों द्वारा दान इनकी आय का प्रमुख स्रोत होता है।

    इनके अलावा कुरानी वर्ग के अन्तर्गत दयानन्द ने शियासुन्नी आदि सम्प्रदायों का उल्लेख किया है। इस वर्ग में मुसलमान आते हैंजिनमें भारतवर्ष के सभी मुस्लिम सम्प्रदायों का समावेश हो जाता है। कुरान-मजीदहदीस आदि इनकी धार्मिक पुस्तकें मानी जाती हैं। पैगम्बरवादपाप-क्षमाचमत्कारवाद आदि इनकी भी प्रमुख धार्मिक मान्यताएं हैं। इमाममुल्लामौलवीहाफिज आदि इनके धर्म-गुरु समझे जाते हैं। इस वर्ग की आय का प्रमुख साधन मुसलमानों से समय-समय पर प्राप्त आय समझी जाती है।

    दयानन्द इन सभी मत-पन्थों/सम्प्रदायों का गहराई से अध्ययन-मनन करने के उपरान्त सहजत: इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि विभिन्न सम्प्रदायों का आधार सम्प्रदायजनित अन्धविश्वास तथा भ्रान्त धारणाएं हैंजन-साधारण में व्याप्त अज्ञानता में ही जिनकी जड़े हैं। इसलिए साम्प्रदायिक गुरुओं और प्रवक्ताओं के सभी दावों तथा आश्वासनों को जन-साधारण समुचित परीक्षा किये बिना ही स्वीकार करने लगते हैं और इसी कारण साम्प्रदायिक आग्रहों में फॅंसी साधारण जनता अपनी-अपनी साम्प्रदायिक मान्यताओं और आस्थाओं को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगती हैजो कालान्तर में अन्य सम्प्रदायों के प्रति असहिष्णुता या कट्‌टरता तथा ईर्ष्या-द्वेष के रूप में सामने आती है। दयानन्द विभिन्न सम्प्रदायों के बीच टकराव तथा ईर्ष्या-द्वेष के लिए धर्म-गुरुओं को उत्तरदायी ठहराते हैं। उनके शब्दों में, "विद्वानों के विरोध ने सबको विरोध-जाल में फॅंसा रखा है। यदि ये लोग अपने प्रयोजन में न फॅंसकर सबके प्रयोजन को सिद्ध करना चाहें तो अभी एक मत हो जायें" (सत्यार्थ प्रकाश-अनुभूमिकाएकादश समुल्लास)। इसलिए वे साम्प्रदायिक एकता स्थापित करने के लिए विभिन्न सम्प्रदायों के आचार्यों से मानवीय-मूल्यों तथा समस्याओं के आधार पर एकता स्थापित करने की अपील भी करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं।

    दयानन्द विभिन्न सम्प्रदायों के बीच तनाव तथा संघर्ष को साम्प्रदायिक गुरुओं का निहित स्वार्थ मानते हैं। उनके अनुसार अलग-अलग "साम्प्रदायिक प्रभु" भोली-भाली अनपढ जनता का आर्थिकधार्मिक तथा सामाजिक शोषण करने के लिए नित नये-नये हथकण्डे खोजते हैंइनसे उन्हें धन तथा कामोपभोग की नित्य प्रति प्रचुर सामग्री प्राप्त होती रहती है। यही कारण है कि दयानन्द साम्प्रदायिकता के मनोवैज्ञानिक आधार पर चोट करने के लिए जन-जन में व्याप्त अज्ञानतामिथ्या विश्वासों तथा अन्धश्रद्धा पर चोट करते हैंजिनमें अवतारवादगुरुडवादपैगम्बरवादभाग्यवादपाप-क्षमाकालवाद आदि प्रमुख हैंवहॉं इसी के साथ साम्प्रदायिकता के आर्थिक स्रोतों को बन्द करने के लिए उसके सामाजिक तथा धार्मिक आधार को छिन्न-भिन्न करने का प्रयत्न करते हैंजिनके अन्तर्गत मूर्तिपूजाव्रततीर्थकुपात्रों को दान आदि का खण्डन विशेष रुप से उल्लेखनीय है।

    दयानन्द विभिन्न सम्प्रदायों में व्याप्त अन्धविश्वास तथा रूढियों काजिन्हें वे प्राय: पाखण्ड के नाम से सम्बोधित करते दृष्टिगोचर होते हैंका खण्डन करने के लिए शास्त्रार्थ प्रणाली को आधार बनाते हैंजिनमें वे सभी अवैदिक मत-पन्थों तथा उनकी आधारभूत मान्यताओं की अवैज्ञानिकता तथा तर्कहीनता का प्रतिपादन प्रतिपक्षी की उपस्थिति में करते हैं। प्राय: जन-साधारण के सम्मुख इस प्रकार के तर्कीय आयोजनों का परिणाम यह होता है कि जन-साधारण असंगततर्क-विरुद्ध अन्धविश्वासों का परित्याग करने लगते हैं और दयानन्द द्वारा प्रतिपादित वैदिक मान्यताओं की सुगमता को स्वीकार करने के लिए उद्यत हो जाते हैं। दयानन्द द्वारा प्रवर्तित पाखण्ड-खण्डन के आन्दोलन की प्रासंगिकता को इसी आधार पर भलीभॉंति समझा जा सकता है।

    दयानन्द की दृष्टि में साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिकता हैफिर चाहे वह कथित वैदिक नाम पर हो अथवा अ-वैदिकवह भारतीय हो अथवा अभारतीय। जन-जन में व्याप्त अज्ञानतामिथ्या विश्वास तथा पूजा-पाठी वर्ग का निहित स्वार्थउसके ये दो प्रमुख संघटक तत्व होते हैं। इसीलिए दयानन्द इन दोनों ही तत्वों के खण्डन के लिए प्राणपण से संकल्पवान्‌ जान पड़ते हैंजो उनके मण्डनात्मक या विधायी पक्ष को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए आवश्यक प्रतीत होता है।

    दयानन्द के साम्प्रदायिकता-विरोधी दृष्टिाकोण को समुचित रूप में समझने के लिए धर्म तथा साम्प्रदायिकता में भी अन्तर करना आवश्यक प्रतीत होता है। दयानन्द के मतानुसार धर्म का अभिप्राय सत्यन्यायपरोपकारपवित्रता आदि उन शाश्वत मानवीय-मूल्यों से हैजिनका व्यक्ति और समाज की उन्नति तथा मुक्ति के लिए पालन करना आवश्यक है। उनके शब्दों में, "जो पक्षपात-रहित न्यायाचरणसत्य भाषणादि युक्त ईश्वराज्ञा वेद से अविरुद्ध है उसको धर्म...... मानता हूँ।" किन्तु साम्प्रदायिकता का आधार संकुचितनिहित स्वार्थ तथा अज्ञानता से है। दयानन्द के अनुसार विभिन्न सम्प्रदायों के अन्तर्गत सत्यन्यायपवित्रतापरोपकारअहिंसा और शान्ति आदि मानवीय मूल्यों को किसी न किसी रूप में अवश्य स्वीकार किया जाता हैअन्यथा समाज में अस्तित्व बनाये रखना असम्भव हो जायेगातथापि अपने निहित स्वार्थों को प्रमुखता और वरीयता प्रदान करने के कारण ही विभिन्न सम्प्रदायों में परस्पर इतने विभेदझूठ तथा ईर्ष्या-द्वेष उत्पन्न हो गये हैं कि उन्हें धार्मिक तो क्या सहजत: सामाजिक संगठन स्वीकार करने में भी कठिनाई का अनुभव होने लगता है। इसलिए दयानन्द जहॉं एक ओर समाज में प्रचलित विभिन्न सम्प्रदायों में व्याप्त अज्ञानताभ्रान्त धारणाओंअन्धविश्वासों तथा पाखण्डों का खण्डन करते हैंवहीं दूसरी ओर वैदिक धर्मत्रैतवादवैदिक कर्मफलवादपुरुषार्थ चतुष्टयसंस्कार आदि का मण्डन भी करते दृष्टिगोचर होते हैं जो उनकी दृष्टि में सबसे प्राचीन सत्य मानवतावादी धर्म है।

    अन्त में निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दयानन्द साम्प्रदायिकता की समस्या दूर करने के लिए विभिन्न धार्मिक मत-पन्थ में निहित शाश्वत महत्व के तत्वों, मूल्यों की एकता पर बल देते हैं। उनके रक्षण, पल्लवन के लिए वैदिक धर्म के संस्थापन का लक्ष्य सामने रखते हैं, जो न केवल विश्व का प्राचीनतम धर्म है, वरन्‌ सभी शाश्वत मूल्यों का सार्वभौम स्रोत भी है। इसी के साथ-साथ विभिन्न साम्प्रदायिक, अन्धविश्वासों एवं भ्रान्त मान्यताओं से मानव-मात्र को मुक्ति दिलाने हेतु उनकी अतार्किकता, अवैदिकता एवं असत्यता का भी सफलतापूर्वक प्रतिपादन करते हैं, जिसकी वर्तमान भूमण्डलीयकरण के दौर में महती आवश्यकता है। -डॉ. सोहनपाल सिंह आर्य

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com

     


    In Dayanand's view, communalism is communalism, be it in the alleged Vedic name or non-Vedic, be it Indian or non-Indian. Ignorance prevailing among the people, false belief and vested interest of the class of worship are its two major constituents. That is why Dayanand appears determined to rebut both these elements, which seems necessary to give a tangible or legislative aspect.


    हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों के लिए के उद्‌घोषक

    महर्षि दयानन्द ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने "हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों के लिए" का नारा लगाया था। स्वामी दयानन्द ने वेदों तथा उपनिषदों द्वारा भारत के प्राचीन गौरव को सिद्ध करके बता दिया और संसार को दिखा दिया कि भारतवर्ष दर्शन-शास्त्र तथा आध्यात्मिक विद्या की खान (भण्डार) है। भारत में रहने वाले लोग मानते है कि भारत की प्राचीन महिमा तथा गौरव पागलों का प्रलाप नहीं, परन्तु सत्य है। आर्यसमाज के लिये मेरे हृदय में शुभ इच्छाएं हैं और उस महान्‌ पुरुष ऋषि दयानन्द के लिये जिसका आज आर्य आदर करते हैं, मेरे हृदय में सच्ची पूजा की भावना है।-भारत-भक्त नेत्री एनी बीसेन्ट

    The problem of communalism and sage Dayanand | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Jalgaon - Jalna - Dholpur - Dungarpur - Damoh - Datia | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Jalgaon - Jalna - Dholpur - Dungarpur - Damoh - Datia | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | साम्प्रदायिकता की समस्या और ऋषि दयानन्द | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • सार्थक लक्ष्य

    युवा-प्रेरणा

    हे मानव !
    जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहॉं,
    फिर जा सकता वह सत्त्व कहॉं?
    तुम स्वत्व सुधा-रस पान करो,
    उठ के अमरत्व विधान करो।

    राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त इन पंक्तियों के माध्यम से मनुष्य को जागृत करते हुए कह रहे हैं कि समस्त प्राणी जगत्‌ में सर्वश्रेष्ठ मानव जीवन दिशाहीन न हो, लक्ष्य से विचलित न हो। जीवन में सफलता पाने के लिये एक सार्थक लक्ष्य होना चाहिए। लक्ष्य के अभाव में जीवन बिना पतवार की नाव के समान होता है। लक्ष्य अपनी इच्छा और प्रतिभा के अनुरूप होना चाहिए। इसे पाने के लिए आपका तन-मन जुट जाए। इसके लिये कठोर से कठोर श्रम भी थकाए नहीं। बेचैन न करे। लक्ष्य को पाने पाने के लिये जो हर कठिनाई हंसते-खेलते झेल लेता है, उदासीनता, निराशा उसके पास नहीं फटकती। ऐसे पुरुषार्थी अपना लक्ष्य पा लेते हैं।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    सब जगह शान्ति ही शान्ति (वेद का दिव्य सन्देश)
    Ved Katha Pravachan _62 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    लक्ष्य को लांघने वाला व्यक्ति भूत और भविष्यकाल के बारे में चिन्ता नहीं करता। क्योंकि वर्तमान से ही भविष्य को खरीदा जा सकता है, वह उसे कल पर टालता नहीं है। जीवन के प्रति सदैव आशावान रहना चाहिये। कठिनाइयॉं और संघर्ष हमें निराश करने नहीं आते, बल्कि हममें साहस और शक्ति का संचार करने आते हैं। इसलिये उनसे निराश होकर जीवन की खुशी खोना नहीं है। जीवन जीने की कला हम जान लें तथा सकारात्मक सोच रखें, तो जीवन एक मुस्कुराहट भरा गीत बन जाएगा।

    नकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति हर स्थिति में अपने को हारा हुआ मानता है। अच्छी से अच्छी परिस्थिति में भी पहले उसकी नजर, उसकी दृष्टि नकारात्मक पहलू पर ही पड़ती है। वह सकारात्मक पहलू पर ध्यान जाने से पूर्व ही निस्तेज हो जाता है। मनोवैज्ञानिक भी इसे मानने लगे हैं। वस्तुतः सभी के अन्दर कोई न कोई शक्ति छिपी है। बस उसे जागृत करने की आवश्यकता होती है और इसके लिये आवश्यकता है प्रेरणा की। प्रेरणा से प्रतिभा का उदय होता है और प्रतिभा परिश्रम के लिये व्यक्ति को मानसिक रूप से तैयार करती है।

    कई बार हम सफल इसलिये नहीं होते, क्योंकि हम अवसर को गम्भीरता से नहीं लेते। जैसे ही हम अवसर पर ध्यान देना शुरू करते हैं, जीवन मेें परिवर्तन घटित होने लगते हैं। तब हम अमूल्य समय को गंवाते नहीं हैं, नष्ट नहीं होने देते। क्योंकि हम यह समझ जाते हैं कि यदि वह समय गंवा दिया, तो पुनः लौटकर नहीं आएगा। फलस्वरूप लक्ष्य पा लेते हैं।

    सार्थक लक्ष्य पाने के लिये जीवन में अनुशासन का भी बहुत महत्व है। एक बार आचार्य सुमेध अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के किनारे टहल रहे थे। शिष्य वरतन्तु ने पूछा "आचार्य! विद्याध्ययन अथवा किसी लक्ष्य की प्राप्ति का आधार बौद्धिक प्रखरता है तो फिर कठोर अनुशासन की क्या आवश्यकता है?''

    आचार्य ने मुस्कुराकर पूछा- "अच्छा बताओ, यह गंगा नदी कहॉं से आ रही है और कहॉं तक जाएगी।'

    वरतन्तु ने कहा- "गंगा गोमुख से चलकर गंगासागर में मिल जाती है।''

    आचार्य ने पूछा- "यदि इसके दोनों किनारे न हों तो?''

    शिष्य ने कहा- "तब तो इसका जल दोनों तरफ बिखर जाएगा, बह जाएगा तथा कहीं बाढ़ और कहीं सूखा पड़ जाएगा और यह अपने लक्ष्य गंगासागर तक तो पहुंच ही नहीं पाएगी, बीच में ही खत्म हो जाएगी।'' आचार्य ने कहा- "हॉं, इसी तरह अनुशासन के अभाव में विद्यार्थी या लक्ष्यार्थी की जीवन-ऊर्जा बंट जाएगी, बिखर जाएगी, क्योंकि एक लक्ष्य नहीं होगा, अनेक सोच होंगे। लक्ष्य प्राप्ति में रुकावट आने पर शरीर और मन निस्तेज हो जाएंगे। फलस्वरूप जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति असम्भव हो जाएगी। अनुशासन, विद्याध्ययन या किसी भी उद्देश्य को प्राप्त करने व उसे आत्मसात्‌ करने का सूत्र है।

    सफलता पाने के बाद उसके सुख और यश को स्थायी रखने के लिये आवश्यक है विनय और अहंकारशून्यता। ज्ञानी जन कहते हैं कि ज्ञान, धन, पद, यश, प्रभुता आदि पाकर मनुष्य में अहंकार पैदा हो जाता है। महर्षि आरुणि के पुत्र श्वेतकेतु अत्यन्त वेद ज्ञानी ऋषि थे। वे जब गुरुकुल से वेदाध्ययन करके लौटे, तब उन्हें अपने पाण्डित्य पर इतना अभिमान हो गया था कि घर आकर उन्होंने अपने पिता महर्षि आरुणि को प्रणाम भी नहीं किया। अपने पुत्र का अभिमान देखकर पिता अत्यन्त दुखी हुए। उन्होंने अपने पुत्र से कहा- "वत्स! तुमने ऐसी कौन सी ज्ञान की पुस्तक पढ़ ली है, जो बड़ों का सम्मान करना भी नहीं सिखाती? यह ठीक है कि तुम बहुत बड़े विद्वान हो, वेद-ज्ञान भी प्राप्त कर लिया है। किन्तु क्या तुम यह भी नहीं जानते कि विद्या का सच्चा स्वरूप विनय है? वत्स! जिस विद्या के साथ विनय नहीं रहती, वह न तो फलीभूत होती है और न ही विकसित होती है।''

    पिता की इस मर्मयुक्त वाणी को सुनकर श्वेतकेतु को अपनी भूल ज्ञात हुई। उन्हें स्मरण हो आया जब उनके गुरु जी ने भी एक दिन कहा था- "वत्स श्वेतकेतु! जिस प्रकार फल आने पर वृक्ष की डालियॉं झुक जाती हैंउसी प्रकार ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात्‌ हमें भी अधिक विनम्र और शालीन हो जाना चाहिये। "विद्या ददाति विनयम्‌के इस सिद्धान्त से प्रकाश पाकर ही तुम जीवन मेें सफल हो सकते हो।'' अपनी अहंकारजनित भूल से लज्जित श्वेतकेतु पिता के चरणों में सर झुकाकर क्षमा मांगने लगे। महर्षि ने उन्हें गले लगा लिया और बोले- "अभिमान तो पुत्र की विद्वत्ता पर मुझे होना चाहियेवत्स!''

    अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
    चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्‌।।

    विद्या विनय सिखाती है। बड़ों का सम्मान करने वाले तथा सदा सत्य का आचरण करने वाले विनयी और शीलवान व्यक्ति के आयु, विद्या, यश और बल- पराक्रम बढ़ते हैं। वह स्वयं शक्तिशाली बनकर समाज और देश को भी उन्नत करता है, क्योंकि वह जानता है कि- जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तथा स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्‌।।

    इस संसार में अनेकों प्राणी जीवन धारण करते हैं और अपनी जीवन लीलाओं को समाप्त कर इस संसार से विदा हो जाते हैं। परन्तु जीवन वही जीवन है जो अपने कुल, वंश, समाज और राष्ट्र का नाम उज्ज्वल करता है।

    राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियॉं कितने सुन्दर शब्दों में स्वाभिमान को जागृत करती हैं-

    निज गौरव का नित ज्ञान रहे,
    हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।

    सब जाये अभी पर मान रहे,
    मरणोत्तर गुंजित गान रहे।।

    कुछ होन तजो निज साधन को,
    नर होन निराश करो मन को।।

    तात्पर्य यह है कि अन्तःप्रेरणा से प्राप्त सार्थक लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अवसर की गम्भीरता को समझना अर्थात्‌ वर्तमान क्षण का सदुपयोग करनासकारात्मक सोचअनुशासन और लक्ष्य के प्रति सचेत रहते हुए आशावान रहना जितना आवश्यक हैउतना ही उस सफलता की आत्मतुष्टि को चिरस्थायी रखने के लिये आवश्यक हैं आत्मविश्वासनिरभिमानिता और सज्जनता।- रोचना भारती

    Contact for more info.- 

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

    Discipline is also very important in life to achieve meaningful goals. Once Acharya Sumedha was walking along the banks of the river Ganges with his disciples. The disciple Varatantu asked, "Acharya! Intellectual intelligence is the basis of learning or the attainment of a goal, so what is the need for rigorous discipline?"

     

    Meaningful goal | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Jhunjhunu - Jodhpur - Hoshangabad - Indore - Nandurbar - Nashik | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Indore MP Address | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore | Arya Samaj in India | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj | Arya Samaj Marriage Service | Arya Samaj in Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Intercast Marriage | Hindu Matrimony in Indore , India | Intercast Matrimony | Marriage Bureau in Indore | Ved Mantra | Ved Saurabh.

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya  | सार्थक लक्ष्य | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | ज्ञान का अथाह भण्डार वेद

  • सूर्य और चन्द्रमा की राह पर चलो

    ओ3म्‌ स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
    पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि।।
    (ऋग्वेद 5.51.15) 

    अर्थ - (सूर्याचन्द्रमसाविव) सूर्य और चन्द्रमा की तरह (स्वस्ति) कल्याण के (पन्थाम्‌) मार्ग पर (अनुचरेम) चलते रहें (पुनः) और (ददता) दान करने वाले (अघ्नता) अहिंसा-स्वभाव वाले (जानता) ज्ञानी पुरुषों की (संगमेमहि) संगति करते रहें। 

    हम सूर्य और चन्द्रमा की तरह कल्याण के मार्ग पर चलते रहें। सूर्य और चन्द्रमा कल्याण के मार्ग पर चलते हैं। हमें भी उन्हीं की तरह कल्याण की राह पर चलना चाहिये। सूर्य और चन्द्र का मार्ग कल्याण का मार्ग किस कारण बन जाता है? इसके दो कारण हैं। एक तो यह कि सूर्य-चन्द्र की गति नियमित है। इतनी नियमित कि वर्षों पहले सूर्य और चन्द्र-ग्रहणों का पता लग जाता है। सूर्य-चन्द्रादि पिण्ड यदि नियमित गति से न चलें, तो परस्पर टकराकर ब्रह्माण्ड नष्ट-भ्रष्ट हो जाये। इनकी नियमित गति के ही कारण वर्ष में छः ऋतुएं बनती हैं। सरदी, गरमी और वर्षायें आती हैं। और दूसरे यह कि सूर्य-चन्द्र अपनी नियमित गति से समय-समय पर जो ऋतुएँ बनाते हैं, उनका फल लोक-कल्याण होता है। हर एक ऋतु से खास-खास प्रकार के लाभ संसार को मिलते हैं। सूर्य-चन्द्र का प्रकाश और गरमी, उनका आकर्षण और विकर्षण सब संसार के कल्याण के लिये ही होते हैं। 

    Ved Katha Pravachan _96 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    हमें भी सूर्य-चन्द्र की तरह "स्वस्ति' के, कल्याण के मार्ग पर चलना चाहिए। हमारा जीवन नियमित हो, हममें समय पर सब कार्य करने की क्षमता हो और हमारी सब शक्तियॉं संसार का कल्याण करने वाली हों। 

    सूर्य प्रकाश पुञ्ज है। उसमें असीम प्रकाश है। इस असीम प्रकाश के कारण ही सूर्य के जीवन में स्वस्ति है। सूर्य की भॉंति हमें भी अपने भीतर असीम प्रकाश भरना चाहिए। हमें महाज्ञानी बनना चाहिये। हमें तृण से लेकर ईश्वर-पर्यन्त सब पदार्थों के सम्बन्ध में भांति-भांति के विद्या-विज्ञान सीखने चाहियें। सूर्य में असीम गरमी है। इस गरमी के कारण ही उसके जीवन में स्वस्ति है। हमें भी सूर्य की भांति अपने जीवन में गरमी भरनी चाहिए। हमारे जीवन में उत्साह, बल, स्फूर्ति, तेजस्विता और आगे बढ़ने की भावनाओं की गरमी रहनी चाहिए। चन्द्रमा में शीतलता, सौम्यता, शान्ति और आह्लादकता का असीम गुण है। इसके कारण ही उसके जीवन में स्वस्ति है। हमारे जीवन में भी यह गुण असीम मात्रा में होना चाहिए। हमारे जीवन में सूर्य की उष्णता और चन्द्रमा की शीतलता का समन्वय होना चाहिए। और हमें अपने प्रकाश-गुण से, ज्ञान-गुण से, अपनी समझ से भली-भांति विचार करके निश्चय करना चाहिए कि हमें जीवन में कब गरमी का परिचय देना है और कब शीतलता का। अपने प्रकाश, उष्णता और शीतलता के ये तीनों गुण हमें संसार के कल्याण में ही लगाने चाहियें। 

    पर हमारे अन्दर वह शक्ति ही कैसे आए, जिसका हमें सूर्य-चन्द्र की तरह संसार के कल्याण में व्यय करना है। इसका उत्तर मन्त्र के उत्तरार्द्ध में दिया गया है। हमें अपने अन्दर योग्यता हासिल करने के लिये ऐसे पुरुषों का संग करना चाहिए जो दानी हों, अपनी शक्तियों को संसार के उपकार में लगाते हों, जो अहिंसाशील हों, संसार के प्राणियों के दुःख-दर्द मिटाने की भावना से जो कर्म करते हों, जो ज्ञानी होकर तरह-तरह की विद्याओं के तत्व का उपदेश कर सकते हों। ऐसे लोगों की संगति में रहने से हमें शक्ति प्राप्त होती है, जिसका हम सूर्य-चन्द्र की तरह लोक-कल्याण में व्यय कर सकेेंगे। 

    मनुष्य! सत्पुरुषों की संगति में बैठना सीख, उनसे शक्ति प्राप्त कर और फिर उस शक्ति को सूर्य-चन्द्र की तरह से लोक-कल्याण में लगा दे। इसी से तेरा जीवन स्वयं भी स्वस्ति (सु अस्ति) अर्थात्‌ उत्तम सत्ता वाला हो सकेगा। कल्याण का यही मार्ग है। - आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     

    Humans! Learn to sit in the company of Satpurus, get power from them and then put that power in the public welfare like Surya-Chandra. With this, your life itself will also be healthy (su asti), that is, with good power. This is the path to welfare. - Acharya Priyavrat Vedavachaspati

     

    Walk on the Way of the Sun and Moon | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Mandsaur - Morena - Satara - Sindhudurg - Sawai Madhopur - Sikar | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi. 

    Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | सूर्य और चन्द्रमा की राह पर चलो | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ

  • स्वस्थ जीवन के लिए उपयोगी बातें

    आदत बनाएँ- सुबह बिस्तर से उठने के बाद पालथी मारकर बैठें और 1-3 गिलास गुनगुना या ठण्डा पानी पिएं। दो-दो घण्टे के अन्तराल पर दिन में कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पिएं।

    महत्वपूर्ण कारक- लम्बी सांस लें और कमर सदैव सीधी रखें। दिन में दो बार मल त्याग की आदत डालें। दिन में दो बार ठण्डे या गुनगुने पानी से स्नान करें। दिन में दो बार सुबह और शाम प्रार्थना एवं ध्यान करेंं।

    विश्राम- भोजन करने के बाद मूत्र त्याग करें और 5 से 15 मिनट तक वज्रासन की मुद्रा में बैठें।सख्त या मध्यम स्तर के बिस्तर पर सोएं और पतला तकिया लगाएं। सोते समय अपनी चिन्ताओं को भूल जाएं और अपने शरीर को ढीला छोड़ दें। पीठ के बल या दाहिनी और करवट लेकर सोने की आदत डालें। भोजन और सोने के बीच दो घण्टे का अन्तर रखें।

    Ved Katha Pravachan -14 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    व्यायाम- प्रतिदिन सुबह आधा घण्टे तक तेज सैर या जॉगिंग करें अथवा आसन-प्राणायाम/सूर्य नमस्कार करें अथवा बागवानी करें या कोई खेल खेलें अथवा तैराकी करें।

    भोजन- भोजन अच्छी तरह चबाकर धीरे-धीरे और शान्तिपूर्वक करें। अपनी भूख के मुताबिक भोजन करेंलेकिन अपना तीन-चौथाई पेट ही भरें। दिन में 7 घण्टे के अन्तर से केवल दो बार ही भोजन करें। सुबह नाश्ते में अंकुरित अन्न अथवा रात भर भिगोए हुए मेवे प्रयोग में लें।

    भोजन का एक भाग अनाज एवं एक भाग सब्जियों का रखें। पके हुए एवं कच्चे भोजन को साथ न मिलाएं। असंतृप्त वसायुक्त शुद्ध तेलों का ही प्रयोग करें और वह भी अल्प मात्रा में।

    कच्चे भोजन में अंकुरित अन्नताजी और पत्तेदार सब्जियॉंमौसम के फलसलादरसचटनीनींबूशहद का उपयोग करें। पके हुए भोजन में चोकर समेत आटाबिना पॉलिश किया चावल और दलिए का इस्तेमाल करें। उबले हुए भोजन का इस्तेमाल करें। उबले हुए भोजन और सूप को प्राथमिकता दें। भोजन करने के बाद 15-20 मिनट तक टहलें।

    कम करें- नमकमिठाइयॉंमसालेमिर्चआइस्क्रीमपकाया हुआ भोजनआलू और गिरीदार चीजें कम मात्रा में लें।

    ऊँची एडी के जूतेकठिन व्यायाम और टी.वी. एवं फिल्मों से बचें। धूम्रपानमदिरानशीली दवाएँसॉफ्टडिंरक्सतम्बाकूजर्दाचायकॉफी एवं बुरे व्यसनों से बचें।

    अभ्यास करें- दिन में एक बार नमक मिले गुनगुने पानी से गरारे कीजिए। अपनी आँखों को स्वस्थ व इनकी चमक बनाए रखने के लिए प्रतिदिन सुबह व शाम इन्हें त्रिफला के पानी से धो लीजिए।

    सप्ताह में एक बार वमनधौति (कुंजल/वमन) कीजिए। कब्ज होने पर एनिमा लीजिए। सप्ताह में एक बार मालिश और धूप स्नान लीजिए। प्रतिदिन तालू की हल्की मालिश कीजिए। प्रतिदिन दो बार माथे व आँखों पर पानी छींटिए और मुँह में पानी भरकर रखते हुए थूक दीजिए। प्रतिदिन थोड़ी देर तक हॅंसिए और गाना गाइए।

    सावधानी बरतें- काटने से पहले सब्जियों व फलों को अच्छी तरह धोइए। क्योंकि इन पर कीटनाशक और अन्य दूषित तत्व लगे होते हैं। जहॉं तक संभव हो सकेफलों व सब्जियों को छिलके समेत खाइए। टी.वी. देखते समय समुचित दूरी पर बैठिए। -रामचन्द्र वैष्णव

    aryasamaj annapurna indore

    स्वस्थ जीवन चाहने वालों के लिए आवश्यक सन्देश

    1. प्रातः सूर्योदय से एक घण्टा पूर्व उठें। अच्छी तरह दॉंत और जीभ साफ करके एक या दो गिलास ताजा पानी पीयें और कुछ देर बाद शौच इत्यादि नित्य कर्मों से निवृत्त हों। आँखों पर शीतल जल छिटकें।

    2. किसी खुले और स्वच्छ स्थान पर जाकर व्यायाम करें। व्यायाम में टहलनादौड़नाभिन्न-भिन्न प्रकार की कसरत और योगाभ्यास इत्यादि सम्मिलित हैं।

    3. स्नान करने से पूर्व तेल की मालिश करलें तो अत्यधिक लाभ होगा।

    4. नित्य ठण्डे जल से खूब मल-मलकर स्नान करें।

    5. स्नान के पश्चात्‌ कुछ समय स्वाध्याय करें। जीवनोपयोगी उत्तम पुस्तकों या पत्र-पत्रिकाओं का पठन-पाठन करें।

    6. भोजन के साथ पानी पीएं। भोजन के आधा घण्टा पूर्व एक या दो घण्टे पश्चात्‌ पानी पीएं।

    7. भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व अच्छी तरह हाथ-पैर धोएँ।

    8. भोजन नियत समय पर करें। बार-बार न खाएं। दो भोजनों के मध्य कम से कम पॉंच घण्टे का अन्तर होना चाहिए। प्रातः भोजन के पश्चात्‌ एक गिलास छाछ (मट्ठा) पीना स्वास्थ्यवर्द्धक है।

    9. भोजन बिना किसी तनाव के प्रसन्नता के साथ करें और अच्छा चबाकर करें।

    10. भोजन सादा और प्रामाणिक रूप से बनाया हुआ होजिसमें पोषक तत्व नष्ट न हुए हों।भोजन हल्का और पौष्टिक करें। यह सन्तुलित होना चाहिए। भोजन बढ़ती हुई अवस्था में कम मात्रा में करना चाहिये।

    11. भोजन के साथ फल और हरी तरकारियॉं प्रचुर मात्रा में खानी चाहिये।

    12. भोजन के साथ दहीअदरकनीम्बूटमाटर का सेवन किसी न किसी रूप से जुड़ा हुआ रखें।

    13.नित्य प्रतिदिन दाल या सब्जी में हींग का प्रयोग अवश्य करें।

    14.फलों का सलाद भोजन के साथ लें।

    15. भोजन के साथ नमक की मात्रा और गरम मसालों की मात्रा अधिक नहीं होना चाहिए।

    16. आंवलानीम्बूहरड़ का नित्य प्रतिदिन सेवन किसी न किसी रूप में अवश्य करें।

    17. भोजन के पश्चात्‌ अवश्य कुछ देर विश्राम करें और कोई भारी परिश्रम का कार्य न करें।

    18. अपने कार्य को नियत समय पर समाप्त करने का प्रयत्न करेंजिससे दूसरे कामों में गड़बड़ी न हो।

    19. दिन भर में इतना काम अवश्य करेंजिससे शाम को कुछ थकावट अनुभव होने लगे। इससे बड़ी मजेदार और मीठी नीन्द आयेगी। परिश्रम करने के पश्चात्‌ थककर सोनायोग-निद्रा के समान है।

    20. शाम का भोजन कुछ हल्का रखें और सोने से कम से कम तीन घण्टे पूर्व भोजन कर लिया करें। भोजन सूर्यास्त के पूर्व ही करना चाहिये।

    21. शाम को भोजन के बाद कुछ देर खुली हवा में अवश्य टहलें।

    22. वस्त्र अधिक कसे हुए न पहनें।

    23. इच्छा शक्ति के साथ अपना कार्य करें।

    24. विचारों को शुद्ध रखें। दिन में काफी हॅंसें और सदा प्रसन्न चित्त रहने का प्रयत्न करें।

    25. रात को सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध पीएं और नौ से दस बजे तक सो जायें।

    26. रात को सोते समय हाथपैरमुँह धोना न भूलें।

    27. संयमहीन स्त्री-पुरुषों का जीवन अशान्त तथा गया-बीता समझें। डॉ. मनोहरदास अग्रावत

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

    Food- chew food properly and slowly and calmly. Eat according to your hunger, but only fill three-fourths of your stomach. Eat only twice at a time of 7 hours. Use sprouted grains in breakfast in the morning or dry fruits soaked overnight.

     

    Svasth jeevan ke lie upayogee baaten | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Sidhi - Tikamgarh - Ujjain - Umaria - Vidisha - Shivpuri | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | स्वस्थ जीवन के लिए उपयोगी बातें | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Puran Gyan | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi. 

    Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Query for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Plan for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Sanskar Kendra Indore | pre-marriage consultancy | Legal way of Arya Samaj Marriage in Indore | Legal Marriage services in Arya Samaj Mandir Indore | Traditional Vedic Rituals in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Wedding | Marriage in Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Pandits in Indore | Traditional Activities in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Traditions | Arya Samaj Marriage act 1937.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • स्वाधीनता आन्दोलन और आर्य समाज

    आर्य समाज के प्रवर्तक, युगनिर्माता, वैदिक धर्म के पुनरुद्धारक, भारतीय संस्कृति के संवाहक, महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम राष्ट्र निर्माताओं में सदैव आदरपूर्वक लिया जाएगा। महर्षि दयानन्द ने आध्यात्मिक, धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में जागृति का शंखनाद तो फूंका ही था, उन्होंने देशवासियों को स्वराज्य के महत्त्व से भी अवगत कराया था। उस समय की राजनैतिक दासता की स्थिति से उनका हृदय विह्वल था। उन्होंने अपने महान ग्रंथ "सत्यार्थप्रकाश" के आठवें समुल्लास में लिखा है- "अब अभाग्योदय से और आर्यो के आलस्य, प्रमाद, परस्पर विरोध से अन्य देशों के राज्य करने की तो कथा ही क्या कहनी, किन्तु आर्यावर्त्त में भी आर्यों का अखण्ड, स्वतन्त्र, स्वाधीन, निर्भय राज्य इस समय नहीं है। जो कुछ भी है सो भी विदेशियों से पादाकान्त हो रहा है। दुर्दिन जब आता है तब देशवासियों को अनेक प्रकार का दु:ख भोगना पड़ता है। कोई कितना ही करे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है। अथवा मत-मतान्तर के आग्रह रहित, माता-पिता के समान कृपा, न्याय औय दया के साथ विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है।

  • स्वामी दयानन्द एवं साम्यवाद

    ऋषि राज तेज तेरा चहुं ओर छा रहा है।
    तेरे बताए पथ पर संसार चल रहा है।।

    उपरोक्त पंक्तियों से ऋषि दयानन्द द्वारा मण्डित वैदिक सनातन धर्म की व्यापकता एवं लोगों के उसके अनुगमन पर प्रकाश पड़ता है। लेकिन अभी भी आशातीत रूप में सफलता हासिल नहीं हो सकी है। स्वामी जी का वैदिक धर्म के प्रति अटूट विश्वास, निष्ठा एवं धर्मानुचरण अनुकरणीय था। वैदिक धर्म के अनुशीलन एवं अनुकरण से ही मानव मात्र का कल्याण सम्भव है। स्वामी जी ने तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों एवं वेद की शिक्षाओं तथा आर्य संस्कृति पर पड़ रहे विजातियों के प्रभावों को बहुत ही नजदीक से समझा, परखा एवं आत्मसात्‌ किया था। यही कारण है कि उनकी शिक्षाएं आए दिन की अग्नि परीक्षाओं में कुन्दन-सी दमकती रही। उनके कटु सत्य से ढोल ढकोसला वाले लोग विचलित हो उठे। यद्यपि उनकी शिक्षाएं मानव मात्र के लिए थी, किसी सम्प्रदाय या धर्म विशेष के लिए नहीं थी।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    कोई राष्ट्र धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता -1

    Ved Katha Pravachan -5 (Explanation of Vedas & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    जहॉं स्वामी जी की सत्य ज्ञान गंगा में बहुत लोगों ने अवगाहन किया और अपनी जीवन धारा को ही बदल डालावहीं कुछ ऐसे नासमझ लोग भी थे जिन लोगों ने न स्वामी जी को समझा और न वेद की शिक्षा को। फलस्वरूप लोग वेद से अलग हो गये। सदज्ञान से वंचित रह गए। जो चीज उनके ज्ञान की स्रोत थी उसी चीज से विरक्ति हो गई। जो उनके लिए अमृत लाया था वही उनको कुपथमार्गी दिखने लगा। कवि ने कहा-

    पिलाया जहर का प्याला इन्हीं नादान लोगों ने।
    जिनके लिए अमृत का प्याला ले के आये थे।

    इसका दुष्परिणाम यह निकला कि जिसे लोगों ने ज्ञान समझ रखा था वह अज्ञान साबित हुआ। जिस नींव पर अपने ज्ञान का महल खड़ा किया था वह महल ही धाराशायी हो गया। भौतिक जगत की चमक दमक मन को चैन एवं शान्ति प्रदान नहीं कर सकी। आज न चैन धनवान को हैन बलवान को है और न रूपवान को। धन वाले अलग दुखी हैंनिर्धन अलग। वेद विहित मार्ग पर नहीं चलने से चैन किसी को नहीं है और न था। अगर कहीं सुख दिखाई भी दिया तो वह क्षणिक था।  

    हर युग और समय की अपनी समस्याएं होती हैं। राम के सामने समस्या थी रावण पर विजय और कृष्ण के सामने पाण्डवों को राज्य प्राप्त करानेकी। स्वामी जी के सामने कुछ और ही समस्या थी। स्वामी जी के सामने तो एक रावण या एक कौरव कुल नहींहजारों रावण एवं हजारों कौरव कुल थे। उनकी समस्या थी वेदों का प्रचारछुआछूत का अन्तढोंग पाखण्ड का खण्डन एवं स्वराज्य प्राप्ति। लोगों में व्याप्त अनास्था को आस्था में बदलना कोई सरल काम नहीं था। यह समुद्र मन्थन से भी कठिन काम था। जिनके लिए उन्होंने अपना सर्वस्व होम किया वही उन्हें दुश्मन समझते थे।

    प्राच्य संस्कृति के धर्मअर्थकाम एवं मोक्ष के महत्व और गहनता से अनभिज्ञ कुछ पाश्चात्य विचारकों ने अर्थ को ही जीवन के सत्य के रूप में प्रतिष्ठित किया। मानव जीवन का चरम लक्ष्य अर्थ प्राप्ति ही माना जाने लगा। आर्थिक समानता के नाम पर नये ढंग से शोषण का सूत्रपात हुआ। साम्यवाद की शिक्षा कहती है कि पूंजीवादी समाज में पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों का शोषण होता है। लेकिन उनकी व्यवस्था में सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद में बहुसंख्यक द्वारा अल्पसंख्यक का शोषण होता है। इस चीज को नजर अन्दाज कर दिया गया। साम्यवादी समानता मात्र आर्थिक समानता तक ही सीमित लगती है।साथ ही मानवीय जीवन के अन्य आदर्श अछूते लगते हैं।

    वैदिक समानता का सिद्धान्त अपने आप में निराला है। सभी मानवों के लिए वेदों के ज्ञान ग्रहण की समानता उत्कृष्टतम व्यवस्था का प्रतीक है। साथ ही धनोपार्जन के लिये संयमित प्रयास की आवश्यकतासाधन की पवित्रता एवं साध्य की उत्कृष्टता सम्बन्धी वैदिक सन्देश व्यवस्था वह व्यवस्था है जिसमें गर्भाधान से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक के मानवीय व्यवहार को व्यवस्थित करने का प्रावधान है। आचार शुद्धि के बाद ही आर्थिक समानता का वास्तविक लक्ष्य प्राप्त कर सकना सम्भव है।

    स्वामी जी के आदर्शों एवं पवित्र निर्देशों के अनुरूप अगर चला जाये तो निस्सन्देह वसुधैव कुटुम्बकम्‌ हो सकता है। लेकिन आज भौतिकवादी चकाचौंध में भूलकर मानव ने अपना स्वरूप ही खो दिया है। आये दिन हो रहे युद्धआतंक और विश्व में हुए व्यवस्था परिवर्तन नि:सन्देह आधुनिक युग में मानव सुख प्राप्ति के लिए हो रहे प्रयास की असफलता की कहानी है। काश !  आज का मानव पुन: एक बार ऋषि के त्याग एवं तपस्या के महत्व को समझ पाता। जिन मूल्यों के लिए उन्होंने अपना बलिदान कियाउन मूल्यों को मानव अपने जीवन का आदर्श बना पाता तो महर्षि का परिश्रम बहुत अंश में आर्थक होता।

    सुख चैन चाहते हो तो वेद को देखो।
    आनन्द चाहते हो तो दयानन्द को देखो।।-रामचन्द्र सिंह क्रान्तिकारी

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmarriagehelpline.com 

    -----------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org

    Swami Dayanand and Communism | Arya Samaj Indore - 9302101186 Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Gondia - Hingoli - Dausa - Dholpur - Chhatarpur - Chhindwara | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore |  Arya Samaj Marriage | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | स्वामी दयानन्द एवं साम्यवाद | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | documents required for arya samaj marriage in indore | Divya Matrimony in Indore Madhya Pradesh. 

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • हिन्दू और आर्य तथा स्वामी दयानन्द

    बहुधा एक प्रश्न उलझा हुआ प्रतीत होता है कि आर्य समाज और हिन्दू धर्म का क्या रिश्ता है। कुछ आर्यसमाजी अपने आपको हिन्दू धर्म से पृथक मानते हैं। उनको हिन्दू कहलाने में लज्जा अनुभव होती है। उनका कहना है कि हिन्दू एक ऐसा नमकीन समुद्र है कि कितना ही मीठा और स्वच्छ जल उसमें मिलायें, वह नमकीन बने बिना नहीं रह सकता। उनको यदि कहा जाये कि आर्य समाज का जन्म हिन्दू धर्म के अन्धविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने के लिए ही हुआ था, तब उनका उत्तर होता है कि रुग्ण की शैया के समीप सोने वाला कभी इलाज नहीं कर सकता, अपितु स्वस्थ चिकित्सक इलाज किया करता है। चिकित्सक और रोगी का जो सम्बन्ध है वैसा ही सम्बन्ध आर्य समाज और हिन्दू धर्म का जानना चाहिए। इस मान्यता के निम्न हेतु दिए जाते हैं -

    हिन्दू का अर्थ काला, चोर आदि है। यह नाम विदेशियों द्वारा भारतीयों को दिया गया। ऐसे नाम को हम आर्य लोग कैसे स्वीकार कर लें?

    Ved Katha Pravachan _104 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    आर्यों का मुख्य धर्म ग्रन्थ वेद है और उनका एक उपास्य देव है। इसके विपरीत अनेकानेक ग्रन्थों और अनेक देवों को मानने वालों से हमारा ऐक्य भाव कैसा?

    मूर्ति पूजा को अवैदिक और गिरावट की खाई मानने वाले आर्यों का मूर्तिपूजकों के साथ मेल कैसा?

    जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्थामृतकों के श्राद्ध-तर्पण और फलित ज्योतिष के विश्वासी हिन्दुओं का अन्तर आर्यों को अपने आप पृथक कर देता है।

    आर्य समाज का मिशन सार्वभौम हैमात्र हिन्दुओं तक नहीं।

    आर्य समाज को पृथक घोषित करने में संस्था वालों का एक निहित स्वार्थ होता है। वह यहॉं के हिन्दुओं से पृथक्‌ समुदाय भारत में अल्पसंख्यक बन जाता है और अल्पसंख्यको को सरकारी सरक्षण प्राप्त होता है।

    तर्क में प्रवीण आर्यसमाजियों से बहस में जीत पाना कठिन है। किन्तु व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाकर महर्षि दयानन्द के विचारों पर ध्यान दिया जायेतब सम्भव हैआर्य लोग अपने आपको हिन्दू मानने में संकोच नहीं करेंगे। ऐसा मानने और जानने से हिन्दुओं में एक नई शक्ति का संचार होगा। किन्तु स्थिति ऐसी बनती जा रही है कि एक ही क्षेत्र में आर्य समाज और हिन्दुओं के कार्यकर्ता एक जुट होकर काम करने के बजाय एक दूसरे को पीछे धकेलने में अधिक सक्रिय होते रहे हैं।

    आर्य समाज के कुछ विचारक अपने आपको हिन्दुओं से पृथक पहचान में रखना अधिक श्रेष्ठ मानते हैंतो वर्तमान हिन्दू नेताओं और संस्थाओं में भी कुछ ऐसी भावना आती जा रही है कि आर्यसमाजियों को अपने साथ न रखा जाये। यह भावना उनके कार्यक्रमोंसम्मेलनों और कार्यालयों में प्रत्यक्ष झलकती है। जब हम देखते हैं हिन्दू धर्म के नेताओं में स्वामी दयानन्द सरस्वती के नाम को प्राथमिकता नहीं दी जातीभले ही वे नेतागण आर्यसमाज के आयोजनों में आकर महर्षि के प्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए उनको हिन्दू धर्म का सुधारक कह देंकिन्तु उनके अपने घर में स्थिति दूसरी है। उनको स्वामी जी का खण्डन कार्य कष्ट देता है। खण्डन के साथ-साथ हिन्दू धर्म के प्रति किये प्यार को वे भूल जाते हैं। आचार्य द्वारा दी गई ताड़ना को कष्टमय बताने वाला शिष्य योग्यता प्राप्त करके भी कृतज्ञता के माप से जितना दूर होता हैउतनी ही दूरी हिन्दू नेताओं ने महर्षि के साथ बना ली है। उन्नीसवीं शताब्दी में अछूतोद्धारशुद्धि और नारी शिक्षा से घृणा करने वाला और ऐसे सुधारों के लिए महर्षि को गाली देने वाला हिन्दू इक्कीसवीं शताब्दी में इसे मानने तो लग गया हैकिन्तु महर्षि द्वारा बताये गये तौर-तरीकों पर इसे आज भी एलर्जी है। जब तक यह एलर्जी बनी रहेगीतब तक सुधार के नाम पर किये जाने वाले प्रयासों का ठोस परिणाम निकलना कठिन है।

    राम जन्म भूमि के अधिकार के लिये लड़ने वाला हिन्दू राम की जन्म भूमि प्रमाणित करने में जो दिमाग लगाता रहा है वही दिमाग उसे भारत भूमि को अपनी सिद्ध करने में लगाने का अवकाश नहीं है। विदेशियों द्वारा दिये गये तथ्यों को बिना सोचे-समझे मानने वाला हिन्दू एक दिन इस देश का आक्रान्ता घोषित कर दिया जायेगासिर्फ इसलिए कि महर्षि द्वारा कही गई बातें खण्डन के चपत के कारण अग्राह्य मान ली गई हैं।

    आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दू और आर्यसमाजी नेतागण महर्षि के कामों को और उनकी मनोदशा को समझने का प्रयास करें। सत्यार्थ प्रकाश के 11 वें समुल्लास में तत्कालीन संन्यासी समुदायों की अकर्मण्यता और उदासीन वृत्ति का उल्लेख करते हुए ऋषि लिखते हैं-"देखो ! तुम्हारे सामने पाखण्ड मत बढते जाते हैं। ईसाई-मुसलमान तक हो जाते हैंतनिक भी तुमसे अपने घर की रक्षा और दूसरों को मिलाना नहीं बन सकता। बने तो जब तुम करना चाहो।"

    ऋषि के इस छोटे से वाक्य में तीन बातों की और स्पष्ट संकेत है। पूरा हिन्दू समुदाय जिसकी चर्चा 11 वें समुल्लास में की गईवह अपना घर है। इस समुदाय को अपना परिवार मानकर ऋषि इसमें दूसरों को मिलाना और ईसाई-मुसलमान बनने से बचाना आवश्यक समझते हैं। हिन्दुओं की घटती हुई जनसंख्या से आज देश का बुद्धिजीवी वर्ग चिन्तित है। काश! यह चिन्ता एक सौ वर्ष पूर्व लगी होती और देश का संन्यासी वर्ग इसे अपना कर्त्तव्य मान लेता तो देश के बंटवारे के दु:खद दिन देखने न पड़ते।

    annapurna arya samaj

    हिन्दू कहलाने में आपत्ति नहीं - स्वामी दयानन्द को हिन्दू परिवार के एक घटक के परिप्रेक्ष्य में उनके कार्यों पर दृष्टि डालने से समझना आसान होगा। परिवार का सदस्य यदि अपना कर्त्तव्य जानता और मानता हो तो उसे इन चार बातों का ध्यान रखना होता है- अपना गौरवपूर्ण नामअपना इतिहासअपनी कमजोरियों को दूर करते रहना और बाहरी शत्रुओं से सजग रहना।

    महर्षि का जीवन संघर्ष उपरोक्त चारों बातों के पालन से ओतप्रोत रहा। महर्षि ने बड़े आग्रहपूर्वक घोषणा की थी कि हमारा नाम आर्य है। हिन्दू नाम हमें विदेशियों की ओर से मिला है। किसी प्राचीन साहित्य में हिन्दू शब्द नहीं मिलता। "हिन्दू" के स्थान पर हमें अपने प्राचीन नाम "आर्य" का प्रयोग करना चाहिए। हिन्दी भाषा के स्थान पर उनको आर्य भाषा कहना अच्छा लगता था। वे "हिन्दुस्तान" के बदले इस देश का नाम फिर से "आर्यावर्त" प्रचलित करना चाहते थे। इस प्रकार का आग्रह अपने घर वालों से (हिन्दुओं) से बराबर करते रहे। इसका अर्थ यह नहीं है कि हिन्दू नाम से उनको घृणा थी। दूसरे लोग उनको हिन्दू कहते थे तो उन्हें आपत्ति नहीं होती थी। इसका प्रत्यक्ष उदारहण मेरठ के जनाब मुहम्मद कासिम के पत्र हैं जो अगस्त सन्‌ 1878 में उन्होंने स्वामी जी को "हिन्दू धर्म के नेता स्वामी दयानन्द सरस्वती जी" से सम्बोधित किये हैं। पत्रों के उत्तर में स्वामी जी ने इस्लाम मत के नेता जनाब मुहम्मद कासिम से सम्बोधन किया है और कहीं भी उन्होंने हिन्दू धर्म के नेता लिखने पर आपत्ति नहीं की। हिन्दू धर्म के नेता के आधार पर ही मेला चान्दपुर के शास्त्रार्थ में जहॉं मुसलमान और ईसाइयों की ओर से पांच-पांच मुसलमान ईसाई विद्वान्‌ रखे गयेवहॉं हिन्दुओं की ओर स्वामी दयानन्द सरस्वती और मुन्शी इन्द्रमणि थे। एक मुसलमान ने एक पण्डित को लेने की जिद की तब स्वामी जी ने कहा था कि आप कौन होते हैं हमारे विद्वानों के चयन करने वाले। स्वामी जी ने सम्बन्धित पण्डित से भी यह कहा था हमारे आपस में फूट डाल कर ये लोग तमाशा देखना चाहते हैं। इस पर भी एक मौलवी साहब नहीं माने। कहने लगे- सब हिन्दुओं से पूछा जाये कि इस एक पण्डित को लिया जाये या नहीं। तब स्वामी जी ने कहा कि आपको सुन्नी जमात ने बैठाया हैशियाओं ने नहीं। पादरी साहब को रोमन कैथोलिक वालों ने नहीं बैठायाइसी प्रकार हम आर्यों में भी कुछ सहमति वाले और कुछ असहमति वाले हैंकिन्तु आपको हमारे बीच गड़बड़ मचाने का कोई अधिकार नहीं है।

    आर्य भाषा या हिन्दी - इस घटना से स्वामी जी के हिन्दू होने में और अपने को हिन्दुओं का प्रतिनिधि मानने में कोई सन्देह नहीं रह जाता। सन्देह वहॉं भी नहीं रहता जहॉं मेला चान्दपुर में उन्होंने कहा था, "देखो ! जितने 1800 वा 1300 वर्षों के भीतर ईसाईयों और मुसलमानों के मतों में आपस के विरोध से फिरके हो गये हैं उनके सामने जो 1,96,08,52,97 वर्षों के भीतर आर्यों के मत में बिगाड़ हुआ तो वह बहुत ही कम है।" पूना के प्रवचन में भी उनका संस्कारित अभ्यास "हिन्दू" अपने आप से निकल गयातब उन्होंने इसका विचार "हम हिन्दुओं कोनहीं मैं भूलाहम आर्यों को करना चाहिए। हिन्दू इस नाम का उच्चारण मैंने भूल से किया। हिन्दू अर्थात्‌ काला यह नाम हमें मुसलमानों ने दिया हैउसको मैंने मूर्खता से स्वीकार किया। आर्य अर्थात्‌ श्रेष्ठ यह हमारा नाम है।" उसी प्रवचन के अन्त में उनका निवेदन था "सज्जन जन! आज से "हिन्दू" इस नाम का त्याग करो और आर्य तथा आर्यावर्त इन नामों का अभिमान धरो। गुण भ्रष्ट हुए तो हुएपरन्तु नाम भ्रष्ट तो हमें न होना चाहिए। ऐसी मेरी आप सबों से प्रार्थना है।"

    ऋषि की यह प्रार्थना आंशिक बनकर रह गई। आर्यावर्त हमने नहीं अपनाया। भारतहिन्दुस्तान और इण्डिया नाम हमारे देश के प्रचलित हैं। हमको इन नामों से लगाव है। इनकी प्रतिष्ठा बनाये रखना हमारा कर्त्तव्य है। हम हिन्दी को आर्य भाषा नाम नहीं दे सके तो "हिन्दी" ही हमें प्रिय है। इसी प्रकार जन-जन के मानस पर आर्य जैसा श्रेष्ठ नामकरण यदि नहीं बैठ पायातब हिन्दू नाम को ही अपना गौरव मानना उचित है। बहुमत हिन्दू कहलाने में है तो बहुमत की भावना के साथ समझौता कर लेना बुद्धिमत्ता है। कभी-कभी निरर्थक शब्द प्रिय बन जाते हैं और सुन्दर अर्थ लिये हुए शब्दों को भुला दिया जाता है। पापा और डैडी जैसे निरर्थक शब्दों ने पिताजी शब्द को पीछे धकेल दिया है। कहने वाला और कहलाने वाला पापा डैडी में अपना गौरव समझता है। अत: आर्यसमाजी जनों को हिन्दी हिन्दुस्तान की तरह हिन्दू कहलाने में अपना गौरव समझना चाहिए। कभी दयानन्द जैसा युग-प्रवर्तक फिर आयेगा। समय आयेगाडैडी पापा का स्थान पिताजी लेगा।

    परिवार का श्रेष्ठ सदस्य - परिवार के अच्छे सदस्य को अपने अतीत पर गौरव होता है। अपना इतिहास विकृत न हो जावेइस प्रकार का प्रयास घर के नेता का होता हैहोना चाहिए। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने ग्रन्थों और प्रवचनों के द्वारा वर्तमान सृष्टि का आरम्भ तिब्बत से माना और तिब्बत से मानव आगे बढते-बढते भारत भू पर आकर बस गये। इस भू खण्ड पर मानव को वेदों का ज्ञान मिला और प्रकृति माता का प्यार मिला। रहने वालों ने अपनी भूमि का नाम आर्यावर्त रखा। यहीं से संस्कृतिसभ्यता का विकास हुआ। ऋषि की यह घोषणा अद्‌भुत है। विदेशियों ने आर्यों को बाहर से आया बताकर इतिहास के साथ जो खिलवाड़ किया है यह खिलवाड़ हिन्दू जाति को ले डूबेगा। आवश्यकता है समस्त हिन्दू जाति अपने मूलस्थान को जन्मस्थान मानेविजित स्थान नहीं। शास्त्रों की रचनाउपनिषदों के उपदेशरामायण-महाभारत की ऐतिहासिक घटनायें आर्यों के गौरव हैं। महाभारत के पश्चात्‌ का भारत यद्यपि कमजोर और पददलित होता गयाकिन्तु ऋषि की देश-वन्दना सत्यार्थ प्रकाश में और पूना-प्रवचनों में स्मरण करने योग्य है। मुस्लिम काल में गुरु गोविन्दसिंह और शिवाजी का उल्लेख करते हुए जहॉं उनको आत्माभिमान हो गया वहॉं ब्रह्मसमाज और प्रार्थना समाज की संकीर्ण मान्यताओं से उनका असन्तोष भी झलकता है। सत्यार्थ प्रकाश में वे लिखते हैं- "अपने देश की प्रशंसा वा पूर्वजों की बड़ाई करनी तो दूर रहीउसके स्थान पर पेट भर निन्दा करते हैं। ब्रह्मादि महर्षियों का नाम भी नहीं लेतेप्रत्युत ऐसा कहते हैं कि बिना अंग्रेजों के सृष्टि में आज पर्यन्त कोई भी विद्वान्‌ नहीं हुआ। आर्यावर्ती लोग सदा से मूर्ख चले आये हैं। इनकी उन्नति कभी नहीं हुई।" इस प्रकार की विचारधारा जाति में फैलाकर उसे घर-घर का भिक्षुक बना देने जैसा कार्य जिस किसी ने किया महर्षि ने उसे देश भक्त नहीं माना। देश भक्ति का पाठ पढाने वाले ऋषि को हिन्दू समुदाय अपना आदर्श न मानेतो यह एक बहुत बड़ी कृतघ्नता होगी। जो आर्य समाजी अपने को हिन्दू से पृथक कहलाना चाहते हैं वे अपने इतिहास की श़ृंखला कैसे जोड़ेंगेमहाभारत काल के पश्चात्‌ वेद के विपरीत कार्य करने वाले आर्यों को हम अपना पूर्वज मानने से इन्कार कैसे कर सकते हैं?

    "ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका" में वेदोत्पत्ति विषय पर लिखते हुए ऋषि कहते हैं- "जब जैन और मुसलमान आदि लोग इस देश के इतिहास और विद्या पुस्तकों का नाश करने लगेतब आर्य लोगों ने सृष्टि के गणित का इतिहास कण्ठ कर लिया और जो पुस्तक ज्योतिष भाष्य के बच गये हैं उनमें और उनके अनुसार जो वार्षिक पंचांगपत्र बनते जाते हैं इसमें भी मिती से मिती बराबर लिखी चली आती हैइसको अन्यथा कोई नहीं कर सकता। इस उत्तम व्यवहार को लोगों ने टका कमाने के लिए बिगाड़ रखा हैयह शोक की बात है और टके के लाभ ने भी जो इसके पुस्तक व्यवहार को बना रखानष्ट न होने दियायह बड़े हर्ष की बात है।"

    वैदिक इतिहास को आज तक जोड़ने वाली कड़ी से आर्य समाज पृथक्‌ नहीं हो सकता। पृथक्‌ मान लेने से कोई इतिहास रह नहीं जाता। महर्षि ने इतिहास को बहुत महत्त्व दिया है। एक पारिवारिक कर्त्तव्य निभाया है। तीसरा कर्त्तव्य ऋषि ने जो निभाया उसी को लेकर आर्य समाज और सनातन धर्म नाम के दो पक्ष बन गये। यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि जो मनुष्य जिस आदत में पड़ जाता है उसे वह छोड़ना नहीं चाहताबल्कि वह अपनी आदत को लाभकारी सिद्ध करने की कोशिश करता हैभले ही वह आदत उसके नाश का कारण बन जावे। छोटे-छोटे परिवारों में सुधार की बातें करने वाला पूर्णत: सफल नहीं हो पाता। परिवार आपस में बंट जाया करते हैं। परम्परा की दुहाईआदतों की शिथिलता और "जनरेशन गैप" आदि सब कारण सुधार प्रक्रिया में बाधा डालते हैं।

    हिन्दू परिवार बहुत विशाल और पुरातन है। अनेकानेक सभ्यताओं का प्रभाव पड़ते-पड़ते आज यह धर्म परिभाषाहीन धर्म हो गया है। नाम से ही आर्य नहीं रहे,किन्तु काम से भी आर्यत्व से दूर हो गये। वेद और ईश्वर को न मानने वाला भी हिन्दू है। शिखा सूत्र का प्रसिद्ध चिन्ह भी अब हिन्दू के लिए आवश्यक नहीं रह गया। डाक्टर का बेटा बिना योग्यता प्राप्त किए डाक्टर नहीं कहला सकता,किन्तु हिन्दू पुरोहित का बेटा जन्मजात पुरोहित है। मांसाहार-शाकाहार के भेद से हिन्दू की पहचान नहीं है। इस स्थिति में हिन्दू धर्म को वास्तविक स्वरूप देने में सबसे अधिक संघर्ष यदि किसी ने किया है तो वह स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ही किया है। वह यह मानकर चले हैं कि आर्यावर्त में प्रचलित सभी मत-मतान्तर,जो नाम मात्र से भी वेद को अपना मानते हैं,वे सभी आर्य हैं। -गजानन्द आर्य (आर्य जगत्‌ दिल्ली,9 जुलाई 1989) 

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.co.in 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     

    There is no objection to being called Hindu - Swami Dayanand will be easy to understand by looking at his actions in the perspective of a component of the Hindu family. If a family member knows and accepts his duty, he has to take care of these four things - his proud name, his history, to keep away his weaknesses and to be aware of external enemies.

     

    Hindu | Arya and Swami Dayanand | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Wardha - Washim - Udaipur - Panna - Raisen | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | हिन्दू और आर्य तथा स्वामी दयानन्द | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony. 

    Arya Samaj | Contact for more info | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Arya Samaj and Hindi | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | Address and No. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents Required for Arya Samaj Marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश

  • होलिकोत्सव-नवसस्येष्टि पर्व होली

    त्यौहारों-पर्वों का जितना अत्यधिक प्रचलन ऋषि-मुनियों-राम-कृष्ण की जन्मभूमि इस हमारे भारतवर्ष में है, सम्भवतः किसी भी देश में इतना न हो। निस्सन्देह पर्वों का व्यक्ति और समाज के जीवन में एक विशेष महत्व है। ये अपने-अपने समय पर प्रतिवर्ष आते हैं और अपनी छाप लगाकर चले जाते हैं। इनका अनुष्ठान व्यक्ति और समाज के जीवन में एक महान प्रेरणा उत्पन्न करता है, जिससे मृतप्रायः व्यक्ति व समाज में जीवन का संचार प्रतीत होने लगता है और इस भौतिकता प्रधान युग में भी कुछ ही देर के लिए सही, मानव कुछ न कुछ आस्तिकता की भावना को अनुभव करने लगता है।

    होली का परम पावन पर्व प्रतिवर्ष वसन्त पञ्चमी के ठीक चालीस दिन पश्चात्‌ फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को बड़े उल्लास से मनाया जाता है। इस पर्व का वैदिक नाम नवान्नेष्टि है, अर्थात्‌ नवीन अन्न प्राप्त होने पर यज्ञ करना।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    समाज में विषमता का कारण
    Ved Katha Pravachan _53 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev



    प्राचीनकाल में आर्य लोगों ने सम्भवतः यह नियम बना लिया होगा कि कोई भी आदमी बिना यज्ञ किये नये अन्न का भोग न करे। हमारे धर्म ग्रन्थों और गृह्यसूत्रों में आया है कि नया अन्न उत्पन्न होने पर "नवसस्येष्टि' नामक यज्ञ करे और जब तक कि उस अन्न से पहले होम न कर ले उसे न खायें। इसको इस प्रकार से और भी स्पष्ट कर दिया है हमारे ऋषियों ने- पर्वण्याग्रयणे कुर्वीत। वसन्ते यवानां शरदि व्रीहीणाम्‌। अग्रपाकस्य पयसि स्थालीपाकं श्रपयित्वा तस्य जुहोति। अर्थात्‌ पर्व में नवीन अन्न से होम करे, वसन्त ऋतु में यवों से और शरद ऋतु में चावलों से इत्यादि।

    वास्तव में अन्न परमात्मा को ही महती कृपा से उत्पन्न होता है। यदि उसकी कृपा न हो तो असीम पुरुषार्थ करने पर भी अन्न प्राप्त होना सम्भव नहीं है और हम प्रायः देखते भी हैं कि बनी-बनाई तैयार फसल, जिसे देखकर किसान फूला नहीं समा रहा है, प्रकति के जरा से आघात से बात की बात में चौपट होती देखी जाती है। आर्यपुरुष अपनी इस असमर्थता को भली-भॉंति समझते थे। अतः वे परमात्मा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते नहीं अघाते थे।

    वैदिक नवसस्येष्टि का प्रचलित नाम "होली' पड़ने का कारण तो स्पष्ट ही है। इस अवसर पर (फाल्गुन पूर्णिमा) अन्न (चना, गेहूँ, यव आदि) अर्ध परिपक्व अवस्था में होता है और उसकी बालों, टहनियों को जब आग में भुनते हैं, तो उसकी संज्ञा लोक में "होला' होती है, जैसा कि हमारे साहित्य में लिखा मिलता है- तृणाग्निभ्रष्टार्द्धपक्वशमीधान्यं होलकः। होला इति हिन्दी भाषा। (शब्दकल्पद्रुमकोश)

    अर्थात्‌ जो अर्धपका अन्न आग में भूना जाता है, उसे संस्कृत में होलक कहते हैं और यही शब्द हिन्दी भाषा में "होला' कहलाने लगा।

    इस पर्व होली का पौराणिक रूप भी बड़ा शिक्षाप्रद है। हमारे त्यौहारों के साथ कुछ महापुरुषों से सम्बन्धित घटनाएँ भी कालान्तर में जुड़ गई हैं। इसी प्रकार इस पर्व से सम्बन्धित एक आख्यायिका श्रीमद्‌भागवत में कुछ इस प्रकार आती है-

    हिरण्यकशिपु एक बड़ा अन्यायी तथा ईश्वर की सत्ता को न मानने वाला राजा था। प्रह्लाद नाम का उस अत्याचारी राजा का पुत्र बड़ा ही आस्तिक और ईश्वरभक्त था। क्योेंकि ईश्वरभक्त प्रह्लाद अपने अन्यायी नास्तिक पिता की बात नहीं मानता और उसकी सत्ता से भी इन्कार करता है। अतः हिरण्यकश्यपु अपने पुत्र की गतिविधियों को पसन्द नहीं करता और उसे रोकने के लिए वह उसे तरह-तरह के कष्ट देता है। परन्तु वह ईश्वरभक्त प्रह्लाद इन कष्टों की लेशमात्र भी चिन्ता नहीं करता। अन्त में नृसिंह नाम का एक अवतार होता है, जो हिरण्यकश्यपु का संहार कर देता है। यह एक अलंकारपूर्ण अत्यन्त शिक्षाप्रद आख्यायिका है। इसका अभिप्राय यही है कि माया जाल में फंसे रहने वाले व्यक्ति का नाम "हिरण्यकश्यपु' है अर्थात्‌ जो सदैव सोना-चांदी, धन-दौलत को ही देखे, उसमें ही ग्रसित रहे।

    हिरण्यमेव पश्यतीति हिरण्यकश्यपु, ऐसा निरुक्त के अनुसार आदि और अन्त के अक्षरों का विपर्य्यय होकर "पश्यक' को "कश्यप' बन जाता है। ऐसे मदान्ध लोगों का अन्त में बुरी तरह से नाश होता है। दूसरी ओर परमात्मा की भक्ति में सदा लीन रहने के कारण जिसको आनन्द लाभ होता है, उसे प्रह्लाद कहते हैं। प्रह्लाद स्वयं सताया जाने पर भी सबकी मङ्गल कामना ही करता है। उसका यही कहना था कि ""किसी का कुछ भी हरण नहीं करना चाहिए। जो लोग माया में ही रत रहते हैं और परमात्मा की सत्ता से इन्कार करते हैं, उनका कभी भी आदर नहीं करना चाहिए। अपने चित्त को निर्मल बनाकर परमात्मा की शरण में जाना चाहिए और इस प्रकार आचरण करते हुए भवसागर से पार तर जाना चाहिए।''

    आज सारा देश हिरण्यकश्यपु बना हुआ है। प्रह्लाद के समान तो कोई दिखाई ही नहीं देता। सबको रुपया-पैसा, धन-दौलत, वैभव, सत्ता चाहिए, चाहे आये किसी भी न्याय-अन्याय साधनों से। इस लालच, कञ्चन व कामिनी के मतवालों ने अपने हितों के लिए देश-राष्ट्र के हितों की बलि दे डाली। समाचार पत्रों की रिपोर्टों और संसद में विपक्षियों द्वारा उठाये गये अनेक मुद्दों से पता चलता है कि तथाकथित राजनेता, उनके इष्टमित्र और बड़े-बड़े व्यापारी लोग भ्रष्टाचार के मामलों में करोड़ों रुपये हजम कर गये और उस अरबों रुपये की राशि को विदेशी बैंकों में जमा कराकर देश को निर्धन ही नहीं किया, अपितु इसकी अर्थव्यवस्था को भी महान हानि पहुंचाई है। इस प्रकार के लोग यह नहीं समझते कि इस क्षणभंगुर जीवन में इतने अराष्ट्रीय काम करके देश को क्यों हानि पहुंचाई जाये। इस जीवन का कोई भरोसा नहीं कि कब यह कच्चे घड़े की तरह समाप्त हो जाये। किसी सन्त ने ठीक ही तो कहा है-

    नर तन है कच्चा घड़ा, लिये फिरे है साथ।
    धाका लागा फुटिया, कछु न आवे हाथ।।

    परन्तु आज का मानव हिरण्यकश्यपु की तरह  इन विषय भोगों में फंसकर जीवन के विनाश के परिणामों से इतना लापरवाह हो गया है कि उसने धार्मिकता को तो जीवन में से ऐसा तुच्छ समझकर बाहर फेंक दिया है, जैसे कोई गृहिणी दूध में पड़ी मक्खी को निकालकर फेंक देती है।

    अतः इस होली पर्व से सम्बन्धित हिरण्यकश्यपु-प्रह्लाद की पौराणिक कथा से यह शिक्षा आज के मानव को लेनी चाहिए कि हिरण्यकश्यपु की तरह उसका नाश अवश्यम्भावी है। अतः उसको अराष्ट्रीय देशद्रोही कामों से परहेज करना चाहिए। यह तो आध्यात्मिक शिक्षा है। परन्तु इस त्यौहार से एक बड़ी सामाजिक शिक्षा भी मिलती है। वैदिक तथा पौराणिक महत्व के अतिरिक्त इस होली के पर्व की एक सामाजिक विशेषता भी विचारणीय है। स्मृतियों में होली से अगले दिन चैत्र मास की प्रतिपदा को महाअस्पर्श चाण्डाल तक के स्पर्श को भी वैधानिक माना है।

    विश्वबन्धुत्व का इससे अच्छा भाव और क्या होगा! आज देश पर अस्पृश्यता के महान कलंक का टीका लगा है। वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द को अस्पृश्यता की विद्यमानता का घृणित अन्याय सर्वथा असह्य था। अछूतों के अधिकारों का जितनी उग्रता से महर्षि ने समर्थन किया, उतनी उग्रता से अन्य किसी ने नहीं किया। महर्षि ने इस कार्य में अपने जीवन की बलि तक दे दी। उनके पश्चात्‌ उनके अनुयायी महान्‌ नेता अमर हुतात्मा स्वामी श्रद्धानन्द और पण्डित लेखराम जैसे महारथियों ने अपने जीवन की बलि दे दी। आगे चलकर स्वतन्त्र भारत की सरकार ने इन कार्यों को अपना लिया और विधान में उनको सवर्णों के समान अधिकार दे तो दिये हैं, तो भी कुछ प्रदेशों में आज भी सवर्ण वर्ग के लोग उन तथाकथित हरिजनों और अछूतों पर अत्याचार करते जरा भी लज्जित नहीं होते। अतः इस सामाजिक बुराई और कुरीति को दूर करने का व्रत इस होली के पवित्र पर्व पर लेना चाहिए। सब भेदभावों को मिटाकर आपस में गले मिलने का भाव और किसी पर्व में नहीं देखा जाता। अतः सामाजिक दृष्टि से भी यह एक महत्वपूर्ण पर्व है। 

    अतः इस पर्व के अवसर पर बड़े-बड़े यज्ञ करके "नवसस्येष्टि' को सार्थक करना चाहिए। भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करके नव अन्न का सेवन करना चाहिए। यज्ञ करने से पौष्टिक व कीटाणुशून्य अन्न प्राप्त करके शरीर को हृष्ट-पुष्ट करके देश को सशक्त बनाना चाहिएऔर भौतिकता को छोड़कर आध्यात्मिकता की ओर जाने का प्रयत्न करके देश में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने में योग दान करना चाहिए। साथ ही हरिजनों, अछूतों की समस्याओं का हल करके उनको अपनी जाति का एक अभिन्न अंग मानकर उनसे सद्‌व्यवहार करके यह अस्पृश्यता का कलंक मिटाने का व्रत लेना चाहिए। यही कुछ महत्वपूर्ण देश-राष्ट्र हितकारी शिक्षाएं हमें इस पर्व को मनाते हुए जीवन में धारण करनी चाहिएं। आज राष्ट्रीय जीवन में इनका अपनाना कहीं अधिक आवश्यक है।

    होली आयी होली आयी

    आपस का हम प्रेम बढ़ाएं, भेदभाव सब दूर भगाएं,
    जाति-पाति के काले बादल , इस धरती से दूर हटाएं,
    यही सन्देश है यह लायी। होली आयी, होली आयी।।
    सुखी-समृद्ध हो जन-जीवन, ऐश्वर्यों से पूरित भू-कण,
    नई सफलता, समरसता से, आह्लादित हो मानव-अभिमन,
    जाग्रत, जग में, ज्योति जगायी। होली आयी, होली आयी।।
    फैले धरती पर अपनापन, विस्तृत हो शुचि प्यार अप्रमन,
    दूर हटे इन महाशक्तियों का, सब आपस का कडुवापन,
    जगा रही युग की तरुणायी। होली आयी, होली आयी।।
    इसके स्वागत में बसन्त नव, हर्षित कोकिल करती कलरव,
    नव आशा-अभिलाषाओं के निकल रहे डालों पर पल्लव,
    प्रकृति वधू नव, नई सजायी। होली आयी, होली आयी।।
    -राधेश्याम विद्यावाचस्पति

    Contact for more info.- 

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.allindiaaryasamaj.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     

    Mythologists have considered Brahma, Vishnu, Mahesh or Shiva as the three gods. Their stories have been written a lot in the Puranas. On the basis of this, Father told Shivdarshan by telling his child Mool Shankar the great significance of night awakening by fasting of Shivaratri, so that the soul can be benefited and attain salvation.

    Holikotsawa | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline  for Nagpur - Nanded - Jalore - Jhalawar - Gwalior - Harda | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Maharshi Dayanand & Vedas | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj  Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore | Hindu Matrimony in Indore | नवसस्येष्टि आर्य पर्व होली | Matrimony | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition .

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | होलिकोत्सव-नवसस्येष्टि पर्व होली | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | ज्ञान का अथाह भण्डार वेद

Copyright © 2021. All Rights Reserved